चेन्नई । तमिलनाडु में द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) और राज्यपाल के बीच जारी खींचतान के बीच मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने शुक्रवार को राज्यपाल आर.एन.रवि से कहा कि मंत्री वी. सेंथिल बालाजी को कैबिनेट से ‘बर्खास्त’ करने की उनकी कार्रवाई असंवैधानिक होने के नाते वैध नहीं है।
स्टालिन ने की राज्यपाल की आलोचना
स्टालिन ने ‘संवैधानिक मशीनरी के टूटने’ का संकेत देने के लिए भी राज्यपाल की आलोचना की। राजभवन ने बृहस्पतिवार रात को कहा था कि उसने अभूतपूर्व ‘बर्खास्तगी’ आदेश को रोक दिया है, लेकिन द्रमुक सरकार की ओर से कहा गया कि वह मंत्री के खिलाफ राज्यपाल के कदम का मुकाबला करने के लिए एक उचित कार्य योजना तैयार करेगी, भले ही वे इससे पीछे हट गये हों।
पत्र में आदेश को बताया असंवैधानिक
रवि को लिखे अपने पत्र में स्टालिन ने कहा, ‘‘मैं दोहराता हूं कि आपके पास मेरे मंत्रियों को बर्खास्त करने की कोई शक्ति नहीं है। यह एक निर्वाचित मुख्यमंत्री का एकमात्र विशेषाधिकार है। मेरी सलाह के बिना मेरे मंत्री सेंथिल बालाजी को बर्खास्त करने का आपका असंवैधानिक संचार शुरू से ही अमान्य है और कानून सम्मत नहीं है।’’
राजभवन के 29 जून के दो पत्रों (एक बर्खास्तगी पर और दूसरा आदेश को स्थगित करने पर) का जिक्र करते हुए स्टालिन ने कहा कि कोई भी पत्र भेजने से पहले कैबिनेट और मुख्यमंत्री की सलाह नहीं ली गई।
स्टालिन ने कहा, ‘‘तथ्य यह है कि आपके द्वारा इतने कड़े शब्दों में पहला पत्र जारी करने के कुछ ही घंटों के भीतर ही आपने अटॉर्नी जनरल की राय लेने के लिए इसे वापस ले लिया। इससे पता चलता है कि राज्यपाल ने इतना महत्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले कानूनी राय भी नहीं ली थी।’’
उन्होंने कहा कि इस मामले पर आपको कानूनी राय लेने का निर्देश देने के लिए (केंद्रीय) गृह मंत्री के हस्तक्षेप की आवश्यकता थी, यह दर्शाता है कि आपने भारत के संविधान के प्रति बहुत कम सम्मान के साथ जल्दबाजी में काम किया है।
इस मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसलों और कानूनी स्थिति का हवाला देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि अयोग्यता का मामला केवल अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने की स्थिति में ही लागू होता है, जबकि सेंथिल बालाजी को प्रवर्तन निदेशालय ने केवल जांच के लिए गिरफ्तार किया है और मामले में अब तक आरोप पत्र दायर नहीं किया गया है।
द्रमुक के राज्यसभा सदस्य और नामी वरिष्ठ अधिवक्ता पी विल्सन ने कहा कि संवैधानिक प्रावधान स्पष्ट करते हैं कि राज्यपाल के पास मंत्री को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं है।
जब उनसे पूछा गया कि राज्यपाल ने मुख्यमंत्री एम के स्टालिन को लिखे पांच पन्नों के पत्र में अपने कदम का बचाव करते हुए अनुच्छेद-154 (राज्य के कार्यकारी अधिकार), अनुच्छेद-163 (मंत्रिपरिषद द्वारा राज्यपाल की सहायता और सलाह) और अनुच्छेद-164 (मंत्री के तौर पर अन्य प्रावधान) का हवाला दिया है तो विल्सन ने कहा कि रवि ने संविधान के तहत कार्य नहीं किया।
उन्होंने कहा, ‘‘उनसे पूछा जाना चाहिए कि क्या उन्होंने संवैधानिक प्रावधानों का अनुपालन किया? उन्होंने संविधान के अनुरूप कार्य नहीं किया। उच्चतम न्यायालय ने स्वयं कई मौकों पर फैसला दिया है कि राज्यपाल का निर्णय तब तक वैध नहीं होगा जबतक मंत्रिपरिषद उनकी सहायता न करे या सलाह न दे।’’ विल्सन ने कहा, ‘‘मंत्रियों को नियुक्त करने या हटाने के संबंध में ‘विशेषाधिकार’ (अनुच्छेद 164) मुख्यमंत्री में निहित है और उच्चतम न्यायालय ने भी अपने फैसलों में इसे रेखांकित किया है।’’
उन्होंने कहा कि सेंथिल बालाजी के खिलाफ केवल जांच चल रही है और इससे वह अयोग्य नहीं ठहराए जा सकते। उच्चतम न्यायालय ने लिली थॉमस बनाम भारत संघ और मनोज नरुला बनाम भारत संघ मामलों में बहुत साफ तौर पर कहा है।’’
तमिलनाडु के वित्तमंत्री थंगम थेनारासु ने बृहस्पतिवार को बालाजी को ‘बर्खास्त’ करने के लिए राजभवन से जारी राज्यपाल की विज्ञप्ति का हवाला देते हुए आश्चर्य व्यक्त किया कि कैसे वह व्यक्ति जांच को प्रभावित कर सकता हैं जो न्यायिक हिरासत में है।
राज्य के कानून मंत्री एस रघुपति ने एक सवाल के जवाब में कहा कि सेंथिल बालाजी बिना विभाग के मंत्री हैं और दावा किया कि उन्हें जांच में हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘ कई केंद्रीय मंत्रियों के खिलाफ मामले हैं और वे मंत्री के तौर पर काम कर रहे हैं। सेंथिल बालाजी तो बिना विभाग के मंत्री हैं।’’