Emergency in India। बात है 70 के दशक की, जब इंदिरा गांधी अपनी सत्ता के उफान पर थीं। यह वह दौर था जब इंदिरा के खिलाफ जनता में आक्रोश भी शुरू हो गया था।
इंदिरा हटाओ का नारा उन दिनों बुलंद हो रहा था। जेपी (जय प्रकाश नारायण) इसके लिए आंदोलन खड़ा कर चुके थे। आंदोलन का मकसद इंदिरा गांधी को सत्ता से बेदखल करना था। इससे कुछ भी कम आंदोलनकारियों को मंजूर नहीं था।
लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी तो उन्हें राजनीति में अपने पांव जमाने में काफी वक्त लगा।
लोग इंदिरा को ‘गूंगी गुड़िया’ कहने लगे थे
यह समय इंदिरा के लिए ऐसा था, जब लोग उनकों गूंगी गुड़िया कहने लगे थे। समय बीटा और जब वह मुखर हुईं तो लोगों को उनका यह अंदाज रास नहीं आया।
इंदिरा अपने फैसलों को लेकर बेहद सख्त थीं। उनपर सत्ता के दुरुपयोग के आरोप लगना आम बात हो गई थी। स्थिति ऐसी बन गई की विपक्ष ने उनको सत्ता से उखाड़ फेंकने कि योजना तैयार कर दी।
इंदिरा के खिलाफ एक जन आंदोलन शुरू हुआ, जिसकी अगुआई जय प्रकाश नारायण ने की और इसकी कमान राज नारायण ने संभाल रखी थी। इस आंदोलन को जेपी आंदोलन (JP Movement) का नाम दिया गया।
राज नारायण रायबरेली से चुनाव में खड़े हुए
साल 1971 के आम चुनावों इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया और चुनावी मैदान में उतर गईं। राज नारायण भी रायबरेली से उनके सामने चुनाव में खड़े हो गए।
यह चुनावी मुकाबला कांटे का हो गया। लेकिन जब चुनाव परिणाम आया तो इंदिरा भारी मतों से जीत दर्ज करने में कामयाब रही थीं। हालांकि राज नारायण को यह हार पची नहीं।
इंदिरा गांधी को अदालत में दी चुनौती
राज नारायण यह मानने को तैयार नहीं थे। उन्हें लगा, इस चुनाव में कुछ हेरफेर हुई है और सत्ता का दुरुपयोग हुआ है। इसके बाद राज नारायण ने इंदिरा गांधी की जीत को अदालत में चुनौती दे दी।
राज नारायण ने तमाम ऐसे सबूत दिए, जिससे यह साबित हो गया कि 1971 के चुनावों में सत्ता का दुरुपयोग हुआ था।
12 जून 1975 को आया फैसला
चार साल तक चले इस मुकदमे का फैसला 12 जून 1975 को आया। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इंदिरा पर लगे आरोपों को सही पाया और उनका चुनाव रद्द करने का ऐतिहासिक फैसला दिया। कोर्ट ने आदेश दिए कि वह छह साल तक किसी भी मंत्रालय को नहीं चला सकतीं।
हालांकि इंदिरा ने कोर्ट का यह फैसला मानने से इनकार कर दिया और सुप्रीम कोर्ट में मामले के खिलाफ जाने की घोषणा की।
इंदिरा ने 25 जून 1975 को इमरजेंसी की घोषणा की
इधर इंदिरा के खिलाफ इस फैसले पर उनके समर्थक आवास के बाहर जुट गए। फैसले के बाद हालात तेजी से बिगड़ते ही जा रहे थे। आखिरकार, इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को इमरजेंसी (Emergency in India) की घोषणा कर दी।
इमरजेंसी लगते ही राज नारायण को उसी दिन गिरफ्तार कर लिया गया। अनके साथ ही विपक्ष के सभी बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया गया।
किसी भी उठती आवाज को दबाने का हर संभव प्रयास किया गया। लोगों की स्वतंत्रता को छिन लिया गया।
समाचार पत्रों और पत्रिकाओं पर रोक लगा दी गई
सभी समाचार पत्रों और पत्रिकाओं पर रोक लगा दी गई। मीडिया संस्थानों के बिजली को काट दिया गया, जिससे कोई भी सूचना प्रसारित न हो सके।
जो भी कुछ प्रकाशित हो रहे थे वों सब सरकार के देख रेख में हो रहे थे। सरकार के खिलाफ एक भी शब्द छपना मुमकिन नहीं था।
देश की जनता आपातकाल के समय में पुरी तरह से अपनी आजादी खो चुकी थी। किसी भी तरह की उठने वाली आवज को दबा दिया गया।
18 महीनों तक के लंबे समय तक चले इस आपातकाल को भारत के इतिहास का कला धब्बा मन जाता है। इस दौरान लोकलतंत्र को पुरी तरह से समाप्त कर दिया गया था।
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