Rabindranath Tagore Jayanti 2023: भारत के पहले नोबल पुरस्कार विजेता रवीन्द्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) का सांस्कृतिक और सामाजिक योगदान न केवल भारत के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए अनमोल है। चाहे वह साहित्य हो या फिर शिक्षा का क्षेत्र या जीवन-दर्शन या संगीत, उन्होंने जो भी दिया, सर्वश्रेष्ठ दिया।
मनुष्य-मात्र की भलाई उनके जीवन का उद्देश्य था। वे जनहित और जीवन-सौन्दर्य के उपासक थे। उन्होंने कहा है- “फूल की पंखुड़ियों को तोड़ कर आप उसकी सुंदरता को इकठ्ठा नहीं कर सकते हैं”। आइए जानते हैं, उनकी रवींद्रनाथ टैगोर जयंती के अवसर उनकी कुछ अनसुनी, रोचक और प्रेरक बातें।
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ऐसे मिला गीतांजलि को नोबल पुरस्कार
कविवर रवींद्रनाथ टैगोर को उनकी सर्वश्रेष्ठ कृति गीतांजलि के लिए 1913 में साहित्य का नोबल पुरस्कार दिया गया। इस पुरस्कार को पाने वाले वे पहले भारतीय ही नहीं बल्कि प्रथम एशियाई भी हैं।
उनकी यह रचना (गीतांजलि) पहली बार 1910 में प्रकाशित हुई थी, जो मूलरूप से से बांग्ला भाषा में थी। लेकिन इस कृति को तब तक नोटिस नहीं किया गया, जब तक कि वह अंग्रेजी में प्रकाशित नहीं हुई। 1912 में गीतांजलि का प्रकाशन का अंग्रेजी में लंदन से हुआ। इसका अनुवाद स्वयं टैगोर किया था। इसके बाद ही दुनिया भर में टैगोर की साहित्यिक प्रतिष्ठा स्थापित हुई और नोबल प्राइज मिला।
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आम के पेट में मेरी दाढ़ी से बड़ी दाढ़ी
आम रवींद्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) का पसंदीदा फल था। कहते हैं, वे आम के इतने दीवाने थे कि उसकी अमावट बनवा कर रख लेते थे और फिर सीजन को छोड़ कर सालों उसके स्वाद लुत्फ़ उठाते थे। लेकिन उनकी पसंद आम आदमियों के विपरीत थी। वे अल्फांसो, लंगड़ा, दसहरी, सफेदा या मालदह जैसे आमों के शौकीन नहीं थे।
उन्हें सुकुल आम पसंद था। जिन्हें नहीं पता, उनको बता दें। इसका इस्तेमाल अचार बनाने में सबसे अधिक होता है। इसकी गुठली चिपटी और पतली होती है। इसमें रेशा भी अन्य आमों से ज्यादा होता है। कच्चा सुकुल बहुत ज्यादा खट्टा होता है, लेकिन जब यह पूरी तरह से पक जाता है, तो यह न केवल अति-स्वादिष्ट बल्कि रस से लबालब होता है। इसमें मौजूद रेशे के बारे में रवींद्रनाथ टैगोर कहा करते थे- “इस आम के पेट में मेरी दाढ़ी से से बड़ी दाढ़ी है”।
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जीवन के अंतिम पड़ाव में सीखी चित्रकला
कला के प्रति रवींद्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) का प्रेम जग-जाहिर है। वे गीत-संगीत में उस्ताद थे। उनका संगीत रवींद्र-संगीत की नाम विख्यात है। लेकिन वे चित्रकला के दूर-दूर रहा करते थे। जबकि उन्होंने अपने विश्वविद्यालय शान्तिनिकेतन में इस कला के अध्ययन और अध्यापन के लिए एक अलग विभाग ही बना दिया था। जिसमें अवनींद्रनाथ और नन्दलाल बसु जैसे स्वनामधन्य कलाकार थे।
जीवन के अंतिम दिनों में रवींद्रनाथ टैगोर को चित्रकला के प्रति रुझान हुआ। और फिर उन्होंने ऐसे-ऐसे रेखाचित्र बनाए कि लोंगो ने दांतों तले उंगलियां दबा लीं। आज भी रेखांकन की बारीकियां समझने के लिए चित्रकला के छात्रों उनके नायाब रेखाचित्रों को पढ़ना और समझना जरुरी है।
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कहते हैं, 67 वर्ष की उम्र में उन्होंने चित्रकारी शुरू किया था और लगभग 20 हजार से ज्यादा रेखाचित्र और पेंटिंग बनाए। वे कहा करते थे कि मेरे चित्र, रेखाओं के माध्यम से की गयी मेरी पद्य रचना है। इनमें प्रकृति और मनुष्य के रहस्यों को उकेरा गया है। ‘नारी’ उनकी चित्रों का प्रमुख विषय रहा है। प्राचीन कानाफूसी, मशीन मैन, चिड़िया, पक्षी, कूदता हुआ हिरण, दृश्य चित्र, पक्षी युगल, थके हुए यात्री आदि उनके प्रसिद्ध चित्र हैं। उन्होंने खुद का रेखा चित्र बनाया था, जो ‘सफेद धागे’ नाम से लोकप्रिय हुआ।
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