Supreme Court On Ayurved Doctors: सुप्रीम कोर्ट में कई मुद्दे विचाराधीन रहते है वहीं पर बात चली है आयुर्वेदिक डॉक्टर और एमबीबीएस डॉक्टर के काम की तो यहां पर याचिका दर्ज हुई कि, एमबीबीएस (MBBS) और आयुर्वेद डॉक्टरों का वेतन बराबर क्यों नहीं है दोनो का काम इलाज करना होता है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर टिप्पणी की है। जिसमें क्या कहा आइए जानते है-
जानिए क्या दिया सुप्रीम कोर्ट ने जवाब
यहां पर बीते दिन इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, आयुर्वेदिक और दूसरी वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों के चिकित्सक एलोपैथिक डॉक्टर (Allopathic Doctors) के समान वेतन और सुविधाएं पाने के अधिकारी नहीं माने जा सकते है। जहां पर सुप्रीम कोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ 2012 में आए गुजरात हाई कोर्ट (Gujarat High Court) के इस फैसले के खिलाफ राज्य सरकार की अपील को मान लिया है। यहां पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि, “वह भी अपने तरीके से लोगों को इलाज उपलब्ध करवाते हैं, लेकिन उनका काम एमबीबीएस डॉक्टरों के जैसा नहीं है. एमबीबीएस डॉक्टर सर्जरी जैसी जटिल प्रक्रिया में भी विशेषज्ञ डॉक्टरों का हाथ बंटाते हैं. इसलिए, दोनों तरह के चिकित्सकों को एक समान स्तर पर नहीं रखा जा सकता।
The apex court in India, the Supreme Court (SC), ruled that Ayurveda practitioners do not perform equivalent work and so cannot have equal pay compared to MBBS(medical science) doctors.
It took a verdict from the honorable SC for people to understand the difference between… pic.twitter.com/Z1mROjscvK
— TheLiverDoc (@theliverdr) April 27, 2023
जानें कोर्ट ने क्या दिए और तर्क
यहां पर आगे तर्क देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, एमबीबीएस डॉक्टरों को अस्पतालों में ओपीडी में सैकड़ों मरीजों को देखना पड़ता है, जो आयुर्वेद चिकित्सकों के मामले में नहीं है, वहीं पर एलोपैथिक डॉक्टरों को इमरजेंसी ड्यूटी का पालन करने और ट्रामा केयर प्रदान करने की आवश्यकता होती है. इमरजेंसी ड्यूटी जो एलोपैथिक डॉक्टर करने में सक्षम हैं वो आयुर्वेद डॉक्टरों की ओर से नहीं की जा सकती हैं।
क्या था हाईकोर्ट का फैसला
आपको बताते चलें कि, यहां पर हाईकोर्ट के फैसले की बात करें तो, गुजरात के सरकारी आयुर्वेदिक डॉक्टरों ने ये मांग की थी कि केंद्र सरकार की तरफ से 1990 में गठित टिकू कमीशन की सिफारिशें उनके ऊपर भी लागू की जानी चाहिए. 2012 में गुजरात हाई कोर्ट ने उनकी बात को सही करार दिया था. इसके खिलाफ गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। यहां पर हाईकोर्ट के फैसले पर कोर्ट ने तर्क देते हुए जवाब दिया है।