भोपाल। आज का मुद्दा : विधानसभा चुनाव से पहले नेताओं की नाराजगी को दूर करना बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने शुरू कर दिया है। दोनों ही दल रूठे नेताओं को मनाने में जुटी है। जाहिर है कि जोड़-तोड़ के बीच नेताओं की नाराजगी का असर चुनावी नतीजों पर दिख सकता है। इसलिए कांग्रेस और बीजेपी चुनाव के वक्त नेताओं की नाराजगी को दूर करने पर फोकस किया है।
ताओं की नाराजगी दूर करने पर फोकस
चुनावी साल है, तो रूठों को मानने की कवायद तेज होती जा रही है। नेताओं की नाराजगी दूर करने पर फोकस न सिर्फ कांग्रेस बल्कि बीजेपी का भी है। जाहिर है कि चुनाव के वक्त कोई भी पार्टी ये नहीं चाहेगी कि उसके नेताओं में संगठन या पार्टी के लिए गुस्सा हो। या यूं कहें कि भितरघात का डर अब बीजेपी और कांग्रेस दोनों को सता रहा है। यही वजह कि नेताओं की नाराजगी दूर की जा रही है। हाल ही में भोपाल में बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा प्रभात झा से मिलने पहुंचे थे, तो शनिवार को इंदौर में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कई वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात की। हालांकि, रूठों को मानने पर बीजेपी का क्या तर्क है, वो जानते हैं।
कांग्रेस में तो खुलकर बोलने की पुरानी परंपरा है
अगर रूठे नेताओं से किसी को सबसे ज्यादा खतरा है, तो शायद वो कांग्रेस ही है। क्योंकि कांग्रेस में तो खुलकर बोलने की पुरानी परंपरा है, लेकिन इस बार के चुनाव से पहले कांग्रेस अपने रूठे नेताओं को मानना पर पूरा फोकस किए हुए है। खरगोन में अरुण यादव के पित सुभाष यादव की प्रतिमा का अनावरण पर इकठ्ठा हुए कांग्रेस नेताओं की इन तस्वीरों ने भी बहुत कुछ बयां किया।
चुनाव के नतीजों पर दिख सकता है असर
बात चाहे अरुण यादव और अजय सिंह की नाराजगी की खबरें की हो या बीजेपी से निष्काषित प्रीतम लोधी को वापस पार्टी में शामिल करने की या फिर दमोह में पूर्व वित्त मंत्री जयंत मलैया से हाथ जोड़कर माफी मांगने की। बीजेपी-कांग्रेस ये समझ रही है कि चुनावी समर में नेताओं की नाजारगी भारी पड़ सकती है और इसका असर भी चुनाव के नतीजों पर दिख सकता है। यही वजह है कि दोनों दल रूठों को मानने में जुटे हैं।