भोपाल। Bhopal AIIMS भोपाल एम्स बेहतर इलाज के लिए पूरे प्रदेश ही नहीं देश में मशहूर होता जा रहा है। बीते दिन इस सरकारी अस्पताल द्वारा एक और बेहतरीन काम कर दिखाया है। जिसमें एक 11 साल की बच्ची को दुनिया का सबसे पतला कॉक्लियर इम्प्लांट लगाया गया। जिसके बाद अब इस बच्ची की जिंदगी बदल गई है। आपको बता दें ये टैक्निक ऐसी लोगों के लिए काम लाई जाती है जो बचपन से ही सुनने में असमर्थ होते हैं। आपको बता दें सामान्य तौर पर जो इम्प्लांट लगाए जाते हैं उनकी मोटाई 7 मिमी तक होती है। पर एम्स में लगाए गए इस इंप्लांट की मोटाई महज 3.9 मिमी है।
कितना आता है खर्च — Bhopal AIIMS
आपको बता दें सामान्य तौर पर यदि इस इंप्लांट को कराया जाता है तो मरीज को 17 लाख रुपए की कीमत का ये पड़ता है। इतना ही नहीं ये इंप्लांट एम्स में उपलब्ध नहीं होता। बल्कि इसे मरीज को बाजार से खरीदना होता है। जबकि गरीब बच्चों के लिए राज्य सरकार की ओर से ये इंप्लांट नि:शुल्क उपलब्ध कराया जाता है। एम्स के निदेशक डॉ. अजय सिंह के अनुसार ये सर्जरी एम्स भोपाल में केंद्र, राज्य सरकार के माध्यम से गरीब बच्चों के लिए पूर्णत: निशुल्क होती है।
किसके लिए है जरूरी — Bhopal AIIMS
चिकित्सकों के अनुसार जो बच्चे जन्म से पूर्णतः बधिर होते हैं या ऐसे वयस्क जिनमें किसी कारण से सुनने की शक्ति जा चुकी है, ऐसे मरीजों के लिए कॉक्लिअर इम्प्लांट ही समाधान है।
क्या कहते हैं डॉक्टर्स — Bhopal AIIMS
एम्स के नाक, कान गला रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. विकास गुप्ता व डॉ. गणकल्याण द्वारा बेहेरा बच्चा का कॉक्लियर इम्प्लांट के बाद प्रत्यारोपण किया गया। डॉ. गुप्ता के अनुसार कॉक्लियर इम्प्लांट दो भागों में होता है। पहले भाग में कान के पीछे दिमाग की हड्डी में छेदकर अंदर की तरफ लगाया जाता है। जिसकी मोटाई ही 3.9 मिमी थी। वहीं बाहर की ओर लगाए जाने वाले भाग स्पीच प्रोससर की मोटाई भी करीब 8 मिमी थी।
ज्यादा कठिन होता है ऑपरेशन —Bhopal AIIMS
डॉ गुप्ता के अनुसार इम्प्लांट जितना छोटा होता है, मरीज के लिए उतना ही फायदेमंद होता है। इस इम्प्लांट की सबसे बड़ी रिस्क ये होती है कि इसे फिट करने के लिए दिमाग की हड्डी मे छोटा सा छेद करना होता है। इसके अलावा उस छोटे से इम्प्लांट को सही जगह फिट करने के लिए सबसे ज्यादा अनुभव और सटीकता की जरूरत होती है।