Manikarnika Ghat: यूपी का वाराणसी (Varanasi) शहर अपनी संस्कृति के अलावा घाटों के लिए भी जाना जाता है। कई लोग इसे काशी तो कोई वाराणसी के नाम से जानता है। लेकिन काशी के अनेकों नाम है जिसमें पुरी के बारह प्रसिद्ध नाम- काशी, वाराणसी, अविमुक्त क्षेत्र, आनन्दकानन, महाश्मशान, रुद्रावास, काशिका, तप:स्थली, मुक्तिभूमि, शिवपुरी, त्रिपुरारिराजनगरीऔर विश्वनाथनगरी शामिल हैं।
बता दें कि 5000 साल पुराना शहर काशी वर्तमान समय में 88 घाटों के साथ पूरी दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाया हुआ है। 88 घाटों में एक मणिकर्णिका घाट भी आता है जिसे सबसे पुराना घाट भी माना जाता है। यह Dead body के लिए काफी प्रसिद्ध हैं। शिव पुराण के अनुसार यहां पर मरने वाले इंसान,/ दाह संस्कार/ को शिवलोक की प्राप्ति होती है।
चिताएं कभी शांत नहीं हुई
कहा जाता है कि मणिकर्णिका घाट पर माता सती की कान की बालियां गिरी थी। इसलिए इसे भी एक शक्ति पीठ के रूप में स्थापित कर इसका नाम मणिकर्णिका रख दिया गया। क्योंकि संस्कृत में मणिकर्ण का अर्थ है कान की बाली। वहीं ऐसा मान्यता है कि जब भगवान शिव इसमें स्नान कर रहे थे उस वक्त उनके कान की बाली से एक मणि कुएं में गिर गई। इसलिए इसे मणिकर्णिका कुंड कहा जाना लगा। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस घाट पर चिता की अग्नि कभी ठंडी नहीं होती है। 24 घंटे 365 दिन लगातार बारिश, गर्मी, बाढ़ कुछ भी आए ये चिता आज तक कभी शांत नहीं हुई है। वैज्ञानिक भी आज तक भी इसका पता नही लगा पाए। वाराणसी के मणिकर्णिका घाट को छोड़ दुनियां में ऐसा कही पर भी नहीं होता।
ऐसा कहा जाता है कि अगर कभी इस घाट पर चिताएं जलनी बंद हो गई तो वो दिन वाराणसी के लिए प्रलय का दिन का है। हालांकि पुराणों में कहा गया है कि कलियुग में भगवान विष्णु के अवतार के बाद यह चिता शांत होगी। वहीं बताते चलें कि इसको दुनिया का सबसे बड़ा मेडिटेशन सेंटर भी माना जाता है। आज भी यहां पर लोग तपस्या करते है। इसके बगल में एक मंदिर भी है जो 90डिग्री में झुका है ये भी मणिकर्णिका का इतिहास है। दुनियां भर से टूरिस्ट गंगा नदी के किनारे स्थित इस अद्भुत घाट का दीदार करने पहुंचते है।