लिसेस्टरशायर। क्या आपको कामों को टालने की आदत है? मुझे है। मुझे पता था कि मुझे एक निश्चित समयसीमा में इस लेख को लिखना है, लेकिन मैं इसे तब तक टालती रही, जब तक अंतिम तिथि निकट नहीं आ गई। इस दौरान मैंने सोशल मीडिया, अन्य वेबसाइट एवं टेलीविजन देखकर समय बिताया। हम यह जानते हुए भी अकसर कामों को अंत समय तक टालते रहते हैं कि इसके नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं और इससे तनाव पैदा हो सकता है। इसके बावजूद हम टालमटोल क्यों करते हैं? अनुसंधान के अनुसार, इसका कारण कई संज्ञानात्मक पूर्वाग्रह हैं। मौजूदा पक्षपात अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार, ‘‘वर्तमान समय को प्राथमिकता देने के कारण हम ऐसे काम को टालते रहते हैं, जिसे करने में हमें आनंद नहीं आता।’’
यदि हमें दो विभिन्न समय में चीजों के बीच चयन करना हो, तो हम वर्तमान को भविष्य की तुलना में तरजीह देते हैं। मनोवैज्ञानिक रूप से, यदि कोई घटना भविष्य में काफी देर बाद होनी हो, तो हम उसका असर या इससे मिलने वाले प्रतिफल को उतनी गंभीरता से नहीं लेते। टालमटोल करते समय हम भविष्य के किसी सकारात्मक परिणाम के बजाय मौजूदा समय की किसी सकारात्मक गतिविधि को चुनते हैं। हमने छात्रों के एक समूह को दो विकल्प दिए कि वे अभी 150 डॉलर चुनेंगे या छह महीने बाद 200 डॉलर चुनेंगे, तो बड़ी संख्या में छात्रों ने 150 डॉलर चुने। हम भविष्य के बड़े लाभ की तुलना में वर्तमान के छोटे लाभ को तरजीह देते हैं। यथास्थिति पक्षपात जैसा कि मैंने अपनी पुस्तक ‘स्वे’ में लिखा है, यथास्थिति को लेकर पक्षपात भी इसमें अहम भूमिका निभाता है।
हमारा दिमाग आलसी होता है और वो जितना संभव हो सके, संज्ञानात्मक बोझ से उतना बचना चाहता है। यानी हम ऐसा काम करने से बचते हैं, जिससे हमारे दिमाग को काम करना पड़े। लाभ एवं हानि टालमटोल करने की प्रवृत्ति सभी मनुष्यों में देखी जाती है। मेरे विचार से यह आलसी होने की निशानी नहीं है, जैसा कि अकसर कहा जाता है। काम टालना हमेशा बुरा नहीं होता। कभी-कभी इससे हमें अनिश्चितताओं पर विचार करने के अवसर मिलते हैं। इसके साथ ही, कभी-कभी यह प्रवृत्ति असल में बाधक भी बन सकती है। इसका कारण मानसिक स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या हो सकती है और इससे निजात पाने के लिए उपचार की आवश्यकता होती है।