जब भी कोई धार्मिक अनुष्ठान होता है तो भगवान की पूजा के बाद उन्हें 56 भोग लगाया जाता है, यानि 56 प्रकार के पकवानों को अर्पित किया जाता है, लेकिन कई लोगों के मन में एक सावाल पैदा होता है कि आखिर 56 भोग ही क्यों चढाएं जाते है। 57 या 58 भोग क्यों नहीं? आइए जानते है।
आप सभी अच्छी तरह से जानते है कि सप्ताह में सात दिन होते हैं। गोकुल में सात दिन तक घनघोर वर्षा हुई और इस वर्षा से गोकुल वासियों को बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने 7 दिन तक गोकुल में गोवर्धन पर्वत को अपनी ऊंगली पर उठाए रखा था। इन सात दिनों के दौरान श्रीकृष्ण ने अन्न का एक भी निवाला नही लिया। सात दिन के बाद जब बरसात रुकी तो सभी गोकुल वासियों ने सोचा हर पहर में खाना खाने वाले श्रीकृष्ण ने इन 7 दिनों तक भूखे रह गए।
भारत में पूरे दिन को 24 घंटे के अलावा 8 पहर में बांटा हुआ था। एक पहर 3 घंटे का होता है। तब आठवें दिन गोकुलवासियों ने 7 दिन के एक-एक पहर के हिसाब से श्रीकृष्ण को भोग के तौर पर 56 किस्म के व्यंजन लिखाए। इसलिए भगवान को 56 भोग लगाए जाते है। उसी दिन से 56 भोग की परंपरा की शुरुआत हुई, जो आज भी चली आ रही है।