Udaipur Nilkantheshwar Mandir: शिल्पकारी का अद्भुत नज़ारा दुनिया के हर कोने में देखने को मिल जाता है। इतिहास में ऐसे कई स्थान मिल जाते है जो इसकी बानगी पेश करते है। लेकिन शिल्पकारी और प्रकर्ति का जब अद्भुत संयोग बनता है तो फिर जो नज़ारे बनते है वह विस्मृत ज़रूर करते है। ऐसा ही विस्मयकारी संयोग बनता है महादेव के नीलकंठेश्वर शिव मंदिर पर जहां स्वयं सूर्य देव भगवान शिव का किरणाभिषेक करते है।
यह मंदिर मध्यप्रदेश के विदिशा जिले के गंजबासोदा से लगभग 25 किलोमीटर दूर उदयपुर गांव में स्थिति है। मंदिर का निर्माण उस समय के कार्यकौशल और कार्यक्षमता को प्रदर्शित करने के लिए काफी है। मंदिर के बहार भगवान शिव के विभिन्न रूपों को पत्थरों पर तरासा गया है। कलकारों की मनोवृति कितनी गहरी और सजीव थी वो इन चित्रों को देखकर समझा जा सकता है। मूर्ति शिल्प में भगवान गणेश, भगवान शिव की नृत्य में रत नटराज, महिषासुर मर्दिनी, कार्तिकेय आदि की मूर्तियां हैं। इनके अतिरिक्त स्त्री सौंदर्य की जो परिकल्पना को जीवंत किया है वो देखते ही बनता है।
मुख्य मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है। उसका आकार 5 फुट 1 इंच शिवलिंग की गोलाई, 6 फुट 7 इंच जमीन से ऊंचाई, 3 फुट 3 इंच जिलेहरी से ऊपर, 22 फुट 4 इंच चौकोर जिलेहरी बनी हुई है। शिवलिंग पर पीतल का आवरण चढ़ा हुआ है। जब सूरज का उदय होता है तब वह भगवान नीलकंठेश्वर को नमन करते हुए ही आकाश की यात्रा पर निकलता है। इस भव्य और खूबसूरत मंदिर का निर्माण परमार राजा उदयादित्त द्वारा किया गया था। मंदिर पर उत्कीर्ण दो शिलालेखों में 1059 से 1080 के बीच परमारा राजा उदयादित्य के दौरान मंदिर के निर्माण का सक्ष्य भी मिल जाते है।
मंदिर में कई आकृतियां बनी हुई है लेकिन प्रत्येक कला में भिन्नता देखने को मिलती है। एक भी कला ऐसी नहीं है जिसमे समानता देखने को मिलती हो। मुख्य मंदिर मध्य में निर्मित किया गया है और उसमें प्रवेश के 3 द्वार हैं। कई दशकों के बाद भी इस मंदिर की भव्यता कम नहीं हुई है बल्कि अपने भव्य इतिहास के वजह से यह इतने छोटे स्थान पर होने के बाद भी दूर – दराज से आने वालों श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बनी हुई है।