India capital History : कई लोगों की धारण होती है कि इतिहास बोरिंग विषय होता है। क्योंकि इतिहास में तारीखों को याद रखना काफ कठीन होता है। लेकिन अगर इतिहास को हम गहराई से समझे तो इससे अच्छा विषय कुछ नहीं है। क्योंकि इतिहास की कई ऐसी घटनाएं हैं जो काफी रोचक है। ऐसा ही एक इतिहास आज हम फिर लेकर आए है। जिसके बारे में शायद ही कम लोगों को पता है। हमारे देश की राजधानी दिल्ली है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि दिल्ली को ही देश की राजधानी क्यों चुना गया, आखिर क्या है इसके पीछे की कहानी, आइए जानते है।
दिल्ली से पहले कलकत्ता थी राजधानी
दिल्ली को देश की राजधानी क्यों बनाया गया यह जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि दिल्ली से पहले देश की राजधानी क्या थी? साल 1911 तक देश की राजधानी कलकत्ता रही है। साल 1905 में लार्ड कर्जन ने बंगाल का विभाजन कर दिया था। जिसके बाद बंगाल में क्रांतिकारी गतिविधियां शुरू होने लगी थी। जिसके चलते करीब पूरे बंगाल में अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन चलने लगे। एक तरफ कांग्रेस इस विभाजन के खिलाफ थी तो दूसरी तरफ मुस्लिम लीग ने इसका समर्थन किया था। मुस्लिम लीग का मानना था कि सरकार के खिलाफ आंदोलन में भाग लेने की बजाय इनका समर्थन करके हम अपने समुदाय का ज्यादा विकास कर सकते हैं।
इसलिए चुना गया दिल्ली
बंगाल विभाजन के बाद बने क्रांतिकारियों के उग्र महौल की वजह से ऐसी जगह पर राजधानी को रखना किसी भी शासन के हित में नहीं हो सकता था। इसी कारण कलकत्ता से राजधानी को दिल्ली स्थानांतरित कर दिया। एक कारण यह भी रहा कि दिल्ली में मध्यकाल में मुस्लिम शासको का शासन रहा है। यहां मुस्लिम समुदाय के लोग ज्यादा थे। जिनपर कांग्रेस की जगह मुस्लिम लीग का प्रभाव ज्यादा था। अंग्रेजों का भी मुस्लिम समुदाय के प्रति अच्छा व्यवहार था, इसलिए मुस्लिम लीग अंग्रेजों के खिलाफ नही जाते थें। इसके अलावा दिल्ली मध्यकाल में राजधानी के रूप में रही है, ऐसे में फिर से पूरी व्यवस्था स्थापित करने की जरूर भी नहीं रही। अंग्रेजों के पास कलकत्ता से राजधानी को स्थानांतरित करने के लिए अच्छा विकल्प कोई नहीं था। इसलिए दिल्ली को देश की राजधानी के लिए चुना गया।