Owner Right : कड़ी मेहनत से बनाया गया मकान या फिर कोई भी संपत्ति सही हाथों में पहुंचे इसके लिए अच्छे उत्तराधिकारी की खोज जरूरी होती है। अचल संपत्ति के मामले में तो यह और भी जरूरी है। क्योंकि ऐसी संपत्तियों की कानूनी प्रक्रिया आसान नहीं होती। उदाहरण के तौर पर जो लोग फ्लैट्स में रहते हैं, उन पर राज्य के सहकारी कानून लागू होते हैं, जो मौत के मामले में घर का नॉमिनेशन मुहैया करते हैं। नॉमिनेशन सिर्फ हाउसिंग सोसाइटी के रिकॉर्ड्स में नाम ही ट्रांसफर करता है। इससे नॉमिनी फ्लैट का मालिक नहीं बन जाता।
ऐसे मामले अकसर आते हैं, जब घर का मालिक बिना वसीयत लिखे दुनिया को अलविदा कह देता है। बाद में संपत्ती को लेकर कई विवाद सामने आते है। इन कानूनी उलझनों से बचने का यही उपाय है कि समय रहते वसीयत की लिखा-पढ़ी कर लें। जिसे नॉमिनी बनाना है, उसे बना दें ताकि संपत्ति का बंदरबांट न हो। आपको बता दें कि भारत में संपत्ति का बंटवारा या वारिस को मिलने वाली प्रॉपर्टी का नियम धर्म के हिसाब से तय है। आइए जानते हैं इससे जुड़े नियम।
हिंदू महिलाओं के लिए नियम
कोई हिंदू महिला अपनी वसीयत किसे देती है या किसके नाम करती है, यह पूरी तरह से हिंदू सक्शेसन एक्ट, 1925 पर निर्भर करता है। यह नियम तब लगता है जब महिला ने वसीयत लिख दी हो। अगर महिला यह काम किए बिना चल बसी हो तो उसमें हिंदू सक्शेनस एक्ट, 1956 लागू होता है। इसी कानून की धारा 14 बताती है कि किसी महिला की क्या-क्या प्रॉपर्टी हो सकती है। धारा 15 और 16 में यह बताया गया है कि किसी महिला की संपत्ति आगे कि पीढ़ियों को कैसे ट्रांसफर होगी। धारा 14 में पूर्वजों से मिली प्रॉपर्टी और खुद से अर्जित की गई प्रॉपर्टी में कोई अंतर नहीं बताया गया है। बंटवारे में मिली प्रॉपर्टी, किसी रिश्तेदार या परिजनों से गिफ्ट में मिली जमीन, शादी के बाद जमीन में हिस्सेदारी या नौकरी से अर्जित की गई प्रॉपर्टी, या महिला के नाम श्रीधन के रूप में प्रॉपर्टी पर उसका पूर्ण अधिकार होता है।
किसके नाम होगी प्रॉपर्टी
अब सवाल है कि यह प्रॉपर्टी उस महिला की मृत्यु के बाद किसके नाम होगी, अगर उसने उसका वसीयत न किया हो। धारा 15(1) के मुताबिक, प्रॉपर्टी का बंटवारा प्राथमिकता के आधार पर होता है। सबसे पहला अधिकार बेटे और बेटियों का होता है। अगर महिला के बेटे या बेटी की मृत्यु हो गई है और उनकी संतानें हैं तो प्रॉपर्टी पर उनका भी अधिकार होता है। इसी कड़ी में पति का नाम भी आता है, लेकिन बेटे-बेटियों के बाद। अगर पति नहीं हैं तो उनके वारिस को प्रॉपर्टी मिल सकती है। इसके बाद महिला के माता-पिता का स्थान आता है। इनमें अगर प्रॉपर्टी लेने वाला कोई न हो तो महिला के पिता के वारिस का नाम है या माता के वारिस का नाम आता है। अगर महिला को पूर्वजों से प्रॉपर्टी मिली है और उस महिला का निधन हो गया, उसकी कोई संतान न हो तो प्रॉपर्टी उसके पिता के वारिस को चली जाती है। अगर प्रॉपर्टी पति या ससुर से मिली है तो संतान न होने पर पति के वारिस को प्रॉपर्टी ट्रांसफर होती है।
मुस्लिम और ईसाई में क्या होता है
मुस्लिम लॉ के मुताबिक, खुद से उपार्जित और पूर्वजों से मिली प्रॉपर्टी में कोई अंतर नहीं है। कानूनी वारिस दो प्रकार के होते हैं- शेयरर और रेसिडुअरी। बिना वसीयत लिखे मुस्लिम महिला की मृत्यु होने पर शेयरर को अधिक संपत्ति मिलती है, जबकि बचा हुआ हिस्सा रेसिडुअरी को जाता है। अगर महिला को किसी रिश्तेदार, पति, बेटा, पिता या मां से कोई प्रॉपर्टी मिली है तो वह उसका असली अधिकारी होती है। ऐसी स्थिति में वह किसी को प्रॉपर्टी दे सकती है। अगर महिला वसीयत लिखाती है तो एक तिहाई से ज्यादा प्रॉपर्टी किसी को नहीं दे सकती। अगर पति ही उसके असली वारिस हैं तो वसीयत के मुताबिक वह दो तिहाई प्रॉपर्टी दे सकती है।
ईसाई में क्या होता है
भारत के ईसाइयों में भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 या इंडियन सक्शेसन एक्ट, 1925 के मुताबिक संपत्ति का बंटवारा होता है।एक रिपोर्ट के अनुसार पत्नि के निधन के बाद पति को घर की एक तिहाई प्रॉपर्टी मिलती है। बची संपत्ति परिवार के अन्य वंशजों में बांट दी जाती है। यदि कोई वंशज न हो तो केवल नातेदार, पति को आधी संपत्ति मिलती है और शेष सगे-संबंधियों में बांट दी जाती है। यदि कोई परिजन न हो तो पति को सारी संपत्ति मिल जाती है।