नई दिल्ली। इस वर्ष ऋषि पंचमी गुरूवार Rishi Panchami 2022 Vrat Katha in Hindi को मनाई जा रही है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी व्रत किया जाता है। धार्मिक Rishi Panchami 2022 मान्यता अनुसार इस दिन ऋषि-मुनियों का स्मरण कर पूजन करने से पापों से मुक्ति मिलती है। हरतालिका तीज के दूसरे दिन और गणेश चतुर्थी के अगले दिन यानि आज 1 सितंबर को ऋषि पंचमी मनाई जा रही है। कहते है इस व्रत के प्रभाव से रजस्वला स्त्री को इस दौरान हुए पापों से मुक्ति मिलती है। इस व्रत में ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देने का बड़ा महत्व है। आइए जानते हैं ऋषि पंचमी व्रत रखने और पूजा करने की विधि, शुभ मुहूर्त और कथा का महत्व।
इसलिए मनाते हैं ऋषि पंचमी
हरतालिका तीज से दूसरे दिन और गणेश चतुर्थी के अगले दिन यानि आज ऋषि पंचमी का त्योहार मनाया जा रहा है। मान्यता है कि जो कोई भी व्यक्ति इस दिन ऋषि.मुनियों का स्मरण कर उनका पूजन करता है। वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है। व्रत करने की तैयारी में श्रद्धालु लग गए हैं।
ज्योतिषाचार्य पंडित रामगोविन्द शास्त्री के अनुसार ऋषि सप्तमी के दिन सप्त ऋषियों का पूजन किया जाता है। शास्त्रों में ऐसा बताया गया है कि ऋषि पंचमी व्रत करने से मासिक धर्म के दौरान भोजन को दूषित किए गए पाप से मुक्ति मिलती है। ऐसा कहा जाता है कि स्त्रियों को मासिक धर्म के दौरान रसोई या खाना बनाने का काम करने से रजस्वला दोष लगता है। ऋषि पंचमी का व्रत करने से स्त्रियां रजस्वला दोष से मुक्त हो जाती हैं। इसलिए इस व्रत को स्त्रियों के लिए उपयोगी माना गया है।
शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि बुधवार को 31 अगस्त 2022 की दोपहर 3ः22 बजे से शुरू हो चुकी है। 1 सितंबर 2022 की दोपहर 2ः49 बजे तक रहेगी। इस साल ऋषि पंचमी व्रत की पूजा करने का शुभ मुहूर्त 1 सितंबर 2022 गुरुवार की सुबह 11ः05 बजे से दोपहर 01ः37 बजे तक रहेगा।
ऋषि पंचमी व्रत पूजा विधि –
ऋषि पंचमी का व्रत एक समय भोजन करके रखा जाता है। व्रत का पारणा पूजा के बाद फल और मेवों से करना चाहिए। इसके लिए सुबह स्नान करके व्रत का संकल्प लें। फिर सप्त ऋषियों मरीचि, वशिष्ठ, अंगिरा, अत्रि, पुलत्स्य, पुलह और क्रतु की पूजा करें। इसके लिए शुभ मुहूर्त में घर के पूजा स्थल की साफ.सफाई करके एक चौकी रखें। इस चौकी पर हल्दी-कुमकुम से चौकोर मंडल बनाएं। इस मंडल पर सप्तऋषियों की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करेंं। फिर इसकी विधि.विधान से पूजा करें। सप्तऋषियों को वस्त्र, चंदन, जनेऊ, फूल और फल अर्पित करें। मिठाइयों का भोग लगाएं। धूप-दीप दिखाएं। आखिर में ऋषि पंचमी व्रत की कथा जरूर सुनें या पढ़ें। बिना कथा पढ़े इस व्रत का पूजा का पूरा फल नहीं मिलता है।
ऋषि पंचमी की कथा
पौराणिक कथाओं मे दिए अनुसार विदर्भ में उत्तक नाम का ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ निवास किया करता था। दोनों की दो संतानें थी। एक पुत्र और एक पुत्री ब्राह्मण ने योग्य वर देखकर अपनी बेटी का विवाह उसके साथ कर दिया है। लेकिन कुछ दिन बाद ही उसकी अकाल मृत्यु हो गई। इसके बाद उसकी बेसहारा पत्नी अपने मायके वापस लौट आई। एक दिन जब उत्तक की विधवा पुत्री सो रही थीए तब मां को उसके शरीर में कीड़े उत्पन्न होते नजर आए। ये देख वो घबरा गई और फौरन इसकी सूचना अपने पति को दी। उत्तक ब्राह्मण ने ध्यान लगाने के बाद बताया कि पूर्वजन्म में उसकी पुत्री ब्राह्मण की पुत्री थी। लेकिन माहवारी के दौरान उससे एक बड़ी गलती हो गई थी। उसने माहवारी की अवस्था में बर्तनों को छू लिया था और ऋषि पंचमी का व्रत भी नहीं किया था। इस वजह से ही उसकी ये दशा हुई है। तब पिता के कहने पर पुत्री ने ऋषि पंचमी का व्रत किया और स्वस्थ हो पाई।
ऋषि पंचमी पूजा विधि
इस दिन सुबह जल्दी उठकर नहा लें और मंदिर की सफाई करने के बाद सभी देवी-देवताओं को गंगाजल से स्नान कराएं। मंदिर में सप्त ऋषियों की तस्वीर लगाएं और उसके सामने एक जल से भरा कलश रख लें। फिर सप्त ऋषियों की पूजा करें सबसे पहले उन्हें तिलक लगाएं फिर धूप.दीपक दिखाकर पुष्प अर्पित करें। इसके बाद मिठाई का भोग लगाएंण् सप्त ऋषियों से अपनी गलतियों के लिए माफी मांगे और व्रत की कथा सुनने के बाद आरती करके सभी को प्रसाद वितरित करें।