नई दिल्ली। Anurag Thakur Statement: सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के बारे में शुक्रवार को कहा कि दिल्ली के ‘एक्साइज’ (आबकारी) मंत्री ‘एक्सक्यूज’ (बहाना बनाने वाले) मंत्री बन गए हैं। केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने आबकारी घोटाले के संबंध में सिसोदिया के परिसरों पर छापा मारा, जिसके बाद उपमुख्यमंत्री ने कहा कि वह ‘‘ईमानदारी की कीमत चुका रहे हैं।’’ उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में शिक्षा सुविधाओं में सुधार के उनके कार्य को पटरी से उतारने के लिए उनके खिलाफ जांच की जा रही है। सिसोदिया के इस बयान के बाद ठाकुर ने कहा, ‘‘ ‘एक्साइज’ मंत्री ‘एक्सक्यूज’ मंत्री बन गए हैं।’’
भ्रष्टाचार से जुड़ा है मामला
उन्होंने कहा, ‘‘आज का मामला शराब के कारोबार के लाइसेंस और इसमें शामिल भ्रष्टाचार से जुड़ा है। संबंधित मंत्री मनीष सिसोदिया हैं। उन्होंने सीबीआई को जांच सौंपे जाने के दिन आबकारी नीति को पलट दिया। यह कदम क्यों उठाया गया, क्योंकि शराब के कारोबार के लाइसेंस जारी करने में भ्रष्टाचार किया गया है।’’ मंत्री ने कहा कि सीबीआई जांच के डर से दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और सिसोदिया को छापेमारी को राष्ट्रीय राजधानी में शिक्षा सुविधाओं से जोड़ना पड़ा। ठाकुर ने कहा, ‘‘जांच के डर के कारण केजरीवाल को शिक्षा के बारे में बोलना पड़ा। यह शिक्षा की बात नहीं है, यह आबकारी नीति का मामला है। लोगों को मूर्ख मत समझिए।’’ मंत्री ने कहा, ‘‘मुझे उम्मीद है कि सिसोदिया धनशोधन मामले में गिरफ्तार किए गए अपने सहयोगी मंत्री सत्येंद्र जैन की तरह याददाश्त चले जाने का दावा नहीं करेंगे।’’
बीजेपी ने भी कसा तंज
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता ने कहा, ‘‘लोगों को जवाब चाहिए। आबकारी नीति में भ्रष्टाचार से केजरीवाल और सिसोदिया का असल चेहरा सामने आ गया है। उन्होंने भ्रष्टाचार से लड़ने और राजनीति में प्रवेश नहीं करने की बात की थी। वे न केवल राजनीति में आए, बल्कि अब भ्रष्टाचार भी कर रहे हैं।’’सीबीआई ने दिल्ली आबकारी नीति मामले में एक प्राथमिकी दर्ज करने के बाद सिसोदिया और भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी आरव गोपी कृष्ण के परिसरों के अलावा 19 स्थानों पर शुक्रवार को छापा मारा। दिल्ली के उपराज्यपाल वी. के. सक्सेना ने आबकारी नीति 2021-22 के क्रियान्वयन में कथित अनियमितताओं की सीबीआई से जांच कराने की सिफारिश की थी। दिल्ली सरकार ने इसके तुरंत बाद इस नीति को वापस ले लिया था।