History OF Matchbox : एक माचिस की कीमत जो 2007 में 50 पैसे थी पहले बढ़कर एक रूपये हुई और अब वो ही माचिस 2 रुपये की मिलने लगी है। देखते ही देखते पिछले 14 सालों में माचिस दोगुनी हो गई। माचिस का हर घर में रोल रहता है जैसे जैसे गैस के दाम बढे वैसे ही वैसे गैस को जलाने के लिए इस्तेमाल होने वाली माचिस के दाम में भी इजाफा हुआ है। माचिस के दाम का बढ़ने के पीछे सबसे बड़ा कारण रहा कच्चे माल के रेट में बढ़ोतरी और चौतरफा बढ़ रही महंगाई का असर माचिस पर भी पड़ा और इसके दामों में भी इजाफा हुआ है।
ऐसे हुआ माचिस का आविष्कार
माचिस का अविष्कार लगभग 195 वर्ष पहले हुआ था। 31 दिसंबर 1827 को जॉन वॉकर नाम के एक वैज्ञानिक ने माचिस का अविष्कार किया था जॉन ब्रिटेन के वैज्ञानिक थे। जॉन ने सबसे पहले 1827 में पत्थर को घिसकर आग जलाने के रूप को बदल कर इसे माचिस की तीली देने की शक्ल देने के बारें में सोचा और एक ऐसा तीली का निर्माण करने में लग गए जो किसी भी खुरदरी जगह पर रगड़ने से वह जल उठती थी। शुरुआत दौर में जॉन का अविष्कार बड़ा घातक सिद्ध हुआ कई बार खतरनाक विस्फोट भी हुए। कई लोग इसकी चपेट में भी आए। दरअसल, माचिस की तीली पर सबसे पहले एंटिमनी सल्फाइड, पोटासियम क्लोरेट और स्टार्च का प्रोग किया गया।रगड़ने के लिए रेगमाल का इस्तेमाल किया, छोटा सा विस्फोट हुआ और जलने पर काफी बदबू आई। ये तो बस शुरुआती दौर का अविष्कार था।
चार साल बदला माचिस का रूप
साल 1832 में फ्रांस में एंटिमनी सल्फाइड की जगह माचिस की तीली पर फॉस्फोरस का इस्तेमाल करना शुरू किया जिससे तीली जलने पर आने वाली गंध दूर हो गई लेकिन फिर भी एक समस्या थी इससे उठने वाला धुंआ काफी खतरनाक था। साल 1855 में स्वीडन ट्यूबकर ने दूसरे केमिकल्स के मिश्रण से एक सुरक्षित माचिस का निर्माण किया जिसका इस्तेमाल आज तक किया जा रहा है। भारत में साल 1927 में शिवाकाशी में नाडार बंधुओं ने माचिस का उत्पादन शुरू किया। इससे पहले भारत में माचिस विदेश से आती थी लेकिन कुछ विदेशी कंपनियों ने भारत में ही प्लांट शुरू कर दिया।
इस पेड़ की लकड़ी से बनती है माचिस
माचिस की तीली कई तरह की लकड़ियों से बनती है लेकिन सबसे अच्छी माचिस की तीली अफ्रीकन ब्लैकवुड से बानी हुई मानी जाती है। पाप्लर नाम के पेड़ की लकड़ी भी माचिस की तीली बनाने के लिए काफी ज्यादा उपयोग होता है। माचिस की तीली के टॉप पर फास्फोरस का मसाला लगाया जाता है जिससे इस ज्वलनशीलता बढ़ जाती है। इसके अलावा पोटैशियम क्लोरेट, लाल फॉस्फोरस, ग्लू, पिसा हुआ कांच, सल्फर और स्टार्च का भी उपयोग माचिस की तीलियों में किया जाता है।