MP Politics : केंन्द्रीय मंत्री जयोतिरादित्य सिंधिया की दादी राजमाता विजयराजे सिंधिया की जनसंघ को स्थापित (MP Politics) करने में सबसे अहम भूमिका रही है। इसी के चलते उन्हें राजमाता के नाम से जाना जाता है। वही मध्यप्रदेश (MP Politics) में उन्हें अन्नदाता कहा जाता था। साल 1967 में राजमाता के दाम पर ही प्रदेश में गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी। इस सरकार में मुख्यमंत्री गोविंद नारायाण सिंह थे। लेकिन यह सरकार (MP Politics) 19 महीने तक ही चल पाई थी। गोविंद नारायाण भले ही राज्य के मुख्यमंत्री रहे हो लेकिन सरकार में राजमाता के बिना पत्ता नहीं हिलता था।
गोविंद नारायण सिंह को मुख्यमंत्री राजमाता ने ही बनवाया था इसलिए वह सरकारी कार्यो में हस्तक्षेप करती थीं। और इसमें वह सरदार संभाजी आंग्रे का सहयोग लेती थी। सरदार आंग्रे उनके विशेष सहयोगी थे, जो आगे चलकर राज्यसभा के सदस्य भी बने। 19 महीने चली सरकार में गोविंद नारायण सिंह, राजमाता के हस्तक्षेप से इतने खपा हो गए थें कि एक बार उन्होंने उनकी भेजी फाइल पर ऐसी की तैसी लिख दिया था।
सीएम ने फाइल पर लिखा ऐसी की तैसी
राजमाता संयुक्त विधायक दल (MP Politics) की नेता और करेरा की विधायक थीं। सरदार आंग्रे राजमाता के नाम से मुख्यमंत्री को ट्रांसफर और नियुक्तियों के निर्देश देते थे। शुरुआत में तो गोविंद नारायण सिंह राजमाता के सभी निर्देश मान लेते थे, लेकिन डेढ़ साल पूरे होते-होते वे इससे तंग आ गए। इसी दौरान राजमाता की अनुशंसा वाली एक फाइल उनके पास आई तो उन्होंने उस पर अपना कमेंट लिखा- ऐसी की तैसी।
सीएम ने दी सफाई
मुख्यमंत्री (MP Politics) के इस कमेंट के बाद बवाल खड़ा हो गया। राजमाता के समर्थकों ने सीएम का विरोध करना शुरू कर दिया। लेकिन गोविंद नारायण सिंह पढ़े-लिखे राजनेता थे। उन्होंने अपनी सफाई में कहा कि ऐसी की तैसी का अंग्रेजी मतलब एज प्रपोज्ड होता है। गोविंद नारायण सिंह के इस जवाब से राजमाता और उनके समर्थक कुछ कह नहीं सके। इसके बाद गोविंद नारायण सिंह ज्यादा दिनों तक मुख्यमंत्री नहीं रह पाए। मार्च 1969 में वे आधी रात को अर्जुन सिंह के घर पहुंचे और कहा कि वे संविद सरकार से तंग आ चुके हैं और कांग्रेस में वापस लौटना चाहते हैं। इसके कुछ सप्ताह बाद ही उन्होंने कांग्रेस ज्वॉइन कर ली। गोविंद नारायण सिंह के इस्तीफे के बाद राजा नरेशचंद्र मुख्यमंत्री बने, लेकिन केवल 13 दिन ही इस पद पर रह सके। गोविंद नारायण सिंह के साथ दर्जनों विधायक भी कांग्रेस में चले गए थे और संविद सरकार के पतन का यही कारण बन गया।