belief behind offering liquor to Kalbhairav: काशी के कोतवाल बाबा कालभैरव शिव के रौद्र रूप में पूजे जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि, भगवान शिव के ही क्रोध रूप वाले अवतार के रूप में इनकी पूजा की जाती है। वहीं इनको दंडाधिकारी भी कहा जाता है। एक सुप्रसिद्ध मान्यता है कि बैगर इनकी इजाजत के बिना इनके दरबार में लगाई हाजरी के बिना कोई काशीवास नहीं कर सकता है। इन सभी मान्यताओं के अलावा एक और मान्यता है कि, बाबा कालभैरव को मदिरा यानी शराब अर्पित की जाती है।खास मौकों पर मंदिर के पुजारी बाबा को शराब का भोग लगाते हैं तो भक्त अपने साथ भी शराब लाकर चढ़ाते रहते हैं। आखिर क्यों बाबा कालभैरव को शराब चढ़ाई जाती है और क्या है इससे जुड़ी मान्यता, जानिए।
भक्तों की अलग-अलग आस्था belief behind offering liquor to Kalbhairav
भक्तों ने बताया कि बाबा को शराब अर्पित करने से सारे दोष समाप्त हो जाते हैं।इस अर्पण से बाबा खुश होते हैं। इसका पुण्य रविवार के दिन और अधिक मिलता है। कई अन्य भक्त कहते हैं, मदिरा तभी चढ़ाते हैं जब कोई काम पूरा नहीं हो पा रहा है। शारीरिक दिक्कत और कष्ट को दूर करने के लिए भी चढ़ाते हैं। इसके अलावा मदिरा का भोग इसलिए भी लगता है, क्योंकि वह बाबा का विशेष प्रसाद है।
क्या कहते हैं मंदिर के महंत
बाबा कालभैरव को मदिरा क्यों चढ़ाई जाती है या मदिरा से पूजा क्यों होती है? इसके बारे में मंदिर के महंत रोहित नाथ योगेश्वर और प्रकाश नाथ योगेश्वर से बात की गई। उन्होंने बताया कि बगैर कालभैरव की अनुमति के विष्णु भगवान भी काशी में नहीं आ सकते हैं। इसीलिए इनको काशी के पुराधिपति कहा जाता है। इनके दरबार में मदिरा चढ़ाने के पीछे वजह यह है कि संकल्प और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। इसलिए लोग मदिरा चढ़ाते है, लेकिन मदिरा का उपभोग नहीं करना चाहिए।
महंत रोहित नाथ योगेश्वर ने बताया कि पुराने समय में योगी ‘खेचरी मुद्रा’ के जरिये वारूणी या सोमरस अपने कंठ में निकालते थें और उसी से मन को एकाग्रचित किया करते थें। इसी प्रकार गृहस्थों के लिए जो ‘खेचरी मुद्रा’ नहीं कर सकते हैं, बाबा के दरबार में शराब चढ़ाने का विकल्प निकाला गया। साथ ही यह संकल्प भी लेना आवश्यक बनाया गया कि मन, क्रम और वचन से अपने पापों का समन करेंगे और बाबा कालभैरव से आर्शीवाद लेंगे कि दरबार से जाने के बाद पाप नहीं करेंगे।
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