जानना जरूरी है: सोशल मीडिया (Social Media) के दौर में हम कुछ पोस्ट, ट्वीट, मैसेज, फोटो और वीडियो को आगे फॉरवर्ड कर देते हैं, बिना इस बात की जांच-पड़ताल किए कि,ये पोस्ट सच है या झूठ, अफवाह है या हकीकत? हम ऐसे करते समय कई बार ये बात नहीं सोचते हैं कि किसी भी झूठ, भ्रामक वायरल मैसेज, वीडियो, फोटो या ट्वीट को शेयर करने से ये सैकड़ों-हजारों लोगों तक पहुंच जाता है। सोशल मीडिया को हम मनोरंजन के तौर पर बेशक इस्तेमाल करते हैं लेकिन जब सूचनाओं का आदान प्रदान होता है, तो हमारी जिम्मेदारी कई गुना बढ़ जाती है। इसलिए हमें पता होना चाहिए कि झूठी खबर को बिना सोचे समझे शेयर करना कितना भारी पड़ सकता है, कौन कौन सी धाराओं में आप पर कार्रवाई हो सकती है? JANAA JAROORI HAI
अब सवाल उठता है कि क्या सोशल मीडिया पर किसी भी पोस्ट को शेयर करना, रि-ट्वीट करना या फॉरवर्ड करना अपराध के तहत आता है, क्या आप ऐसा करके कानूनी पचड़े में फंस सकते हैं? JANAA JAROORI HAI
कानूनी प्रावधान! JANAA JAROORI HAI
भारतीय कानून के तहत ऐसी कोई डायरेक्ट धारा नहीं है, जो सोशल मीडिया पर किसी भी भ्रामक, अफवाह फैलाने वाली, झूठी या भ्रामक पोस्ट को शेयर करने, फॉरवर्ड करने, साझा करने पर यूजर पर लगती हो। हालांकि ऐसे दूसरे प्रावधान हैं, जो IT एक्ट और IPC के तहत आपराधिक दायित्व तय करते हैं। इलेक्ट्रॉनिक रूप में किसी भी आपत्तिजनक और अश्लील सामग्री को पब्लिश करने पर IT एक्ट की धारा 67 के तहत कार्रवाई और दंड का प्रावधान है। इसके तहत किसी भी व्यक्ति की सजा को 3 सालों तक बढ़ाया जा सकता है। सिर्फ जेल ही नहीं दोषी के ऊपर जुर्माने का भी प्रावधान है। दूसरी बार या बाद की सजा के हालातों में सजा को बढ़ाकर पांच साल तक किया जा सकता है।
बच्चों को यौन कृत्य में शामिल करने पर सजा
IT एक्ट की धारा 67ए के तहत इलेक्ट्रॉनिक तरीके से बच्चों को यौन कृत्य में शामिल करने वाली सामग्री को शेयर करने, पब्लिश करने या फॉरवर्ड करने पर भी सजा हो सकती है। सजा के रूप में दोषी को पांच साल के लिए जेल और जुर्माना लगाया जा सकता है। दूसरी बार या दोबारा दोषी साबित होने पर ये सजा सात साल बढ़ाई जा सकती है, इसके अलावा जुर्माना भी बढ़ाया जा सकता है।
अपमानजनक संदेश भेजने पर
IPC की धारा 153A, 153B, 292, 295A और 499 के तहत अगर कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के खिलाफ कोई अपमानजनक और आपत्तिजनक मैसेज साइबर वर्ल्ड में भेजता है तो इन धाराओं के तहत कार्रवाई बनती है। ऐसे अपमानजनक और आपत्तिजनक संदेशों में सांप्रदायिक वैमनस्य पैदा करना, अश्लीलता फैलाना, धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाना और मानहानि जैसे आरोप आते हैं। इन धाराओं के तहत अलग अलग सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
पुराने फैसले में कोर्ट ने क्या कहा?
साल 2018 में मद्रास हाईकोर्ट ने एक नेता एसवी शेखर के खिलाफ फैसला सुनाया था। कोर्ट ने कहा अपने फैसले में कहा था कि सोशल मीडिया में किसी मैसेज को शेयर करना या फॉरवर्ड करना उस विचार को मानना और उनके समर्थन के तहत आता है। ये फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने नेता कीअग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया था।
नेता पर आरोप था कि उसने महिला पत्रकारों के खिलाफ लिखी गई अपमानजनक पोस्ट को सोशल मीडिया पर शेयर किया था। निचली अदालत के इस फैसले के बाद एसवी शेखर ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में विशेष याचिका दायर करते हुए कहा कि एक जून 2018 को याचिका निरस्त कर दिया था। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि शेखर निचली अदालत में पेश होंगे, जहां वो जमानत की याचिका डाल सकते हैं।JANAA JAROORI HAI
कोर्ट पर निर्भर केस
सोशल मीडिया पर किसी आपत्तिजनक और अपमानित करने वाले पोस्ट पर कोई प्रत्यक्ष वैधानिक प्रावधान तो नहीं है लेकिन हर मामले के हालात के आधार पर फैसला लेना कोर्ट पर निर्भर करता है। कोर्ट ने अलग अलग केसों में इस पर फैसला सुनाया है। साल 2017 में ऐसे ही रि-ट्वीट के मामले में आप नेता राघव चड्ढा की याचिका को दिल्ली हाईकोर्ट खारिज कर चुका है। जस्टिस संगीता ढींगरा ने रि-ट्वीट करने से आपराधिक दायित्व आकर्षित होगा।JANAA JAROORI HAI