आग की तरह बरस रही गर्मी के बीच बंसल अस्पताल में अस्पताल में मेनिया (उन्माद) के अजीबोगरीब मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। इनमें ऐसे रोगी भी हैं, कोई अपने घर पर नहीं टिकता, जिन्हें परिजन ढूंढते ही रहते हैं तो कोई इतना धार्मिक कि पूरे दिन प्रवचन देता रहता है। बंसल अस्पताल के मानसिक रोग विभागाध्यक्ष डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी (Psychiatrist Dr. Satyakant Trivedi) बताते हैं कि मेनिया के ज्यादातर रोगी 1 से 3 माह के बाद अस्पताल लाए जा रहे हैं, जबकि समय पर इलाज शुरू हो तो इन्हें आसानी से ठीक किया जा सकता है।
केस 1 – सिहोर से आए गल्ला व्यापारी श्याम (बदला हुआ नाम) उनके परिजनों कहना है कि गर्मी बढ़ने के बाद से वे क्रोधित हो रहे हैं ,अपने कर्मचारियों पर सामान फेक देते हैं।पैसे को लेकर लड़ाई करने लगते हैं और नजदीकी लोगों पर शक जाता है। कोई अपना नहीं लगता।पुलिस को बुलाने की बातें भी करने लगते हैं ।घर में रोज झगड़ा होता है। बहुत ज्यादा बातें करने लगे हैं।इससे तनावपूर्ण स्थिति निर्मित हो गयी है।घरवाले कहते हैं गर्मी में इनका स्वभाव थोड़ा सा बदल रहता था लेकिन पहले कभी ऐसा नहीं हुआ।
केस 2 – सिरोंज के 20 वर्षीय लड़की गर्मी बढ़ने के बाद से कम सोने लगी है,प्रवचन देने लगी है उसे लगता है कि उसके पास ईश्वरीय शक्तियां है और भगवान उससे बातें करके संदेश दे रहे हैं। इससे खाना कम हो गया है। अचानक कभी कभी रोने लगती है ।तांत्रिक के पास भी ले गए पैसे भी दिए लेकिन कुछ लाभ न हुआ।
केस 3 – कटनी से होशंगाबाद एक फेथ हीलर ने मेरे पास एक 20 साल के लड़के को भेजा, वो पिछले 15 दिनों से घर में सबसे लड़ रहा था,पड़ोसियों पंर शक कर रहा था,बोला सब मिले हुए हैं।
कंसलटेंट साइकेट्रिस्ट डॉ सत्यकांत त्रिवेदी (Psychiatrist Dr. Satyakant Trivedi) ने बताया कि मासिक औसत तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के लिए अमेरिकी काउंटी में आत्महत्या दर 0.7% और मैक्सिकन नगर पालिकाओं में 2.1% बढ़ जाती है। कोविड के बाद लोगों का मानसिक स्वास्थ्य काफी खराब हुआ है,ऐसा माना जा सकता है खराब मानसिक स्वास्थ्य पर तेज गर्मी का प्रभाव उसे मानसिक रोगों में बदल रहा है। वे कहते हैं एक शोध के अनुसार antisocial पर्सनालिटी डिसऑर्डर से ग्रसित लोगों के द्वारा हिंसा के मामले भी बढ़ जाते हैं।
गर्मियों में नींद की गुणवत्ता का खराब होना कई बार दवा के साथ संतुलित रह रहे मरीजों में अचानक मूड परिवर्तित कर रहा है। कई ऐसे भी पेशेन्ट आये जो बाइपोलर डिसऑर्डर के लिए लिथियम पर थे,उन्हें डिहाइड्रेशन के कारण बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ा। जरूरत है कि अब जलवायु परिवर्तन से देश के नागरिकों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहे प्रभावों का भी अध्ययन किया जाए और सब मिलकर इस पर काम करें।
डॉ सत्यकांत त्रिवेदी(Psychiatrist Dr. Satyakant Trivedi) , बंसल सुपरस्पेशलिटी अस्पताल में कन्सलटेंट साइकेट्रिस्ट हैं और आत्महत्या रोकथाम नीति लाने की एडवोकेसी कर रहे हैं।