नई दिल्ली। पति की दीर्घायु और सुख—समृद्धि के Vat Savitri Vrat 2022 Date: लिए किया जाने Vat Amavas 2022 वाला व्रत वट सावित्री जल्द ही आने वाला है। आपको बता दे इस साल वट सावित्री व्रत 30 मई यानि सोमवार को आ रहा है। सुहागन स्त्रियां हाथों में मेहंदी लगाकर पूरे 16 श्रृंगार के साथ ये व्रत रखती हैं। आपको बता दें ज्येष्ठ मास में पड़ने वाले व्रतों में वट अमावस्या को बेहद उत्तम व प्रभावी व्रतों में से एक माना गया है। इस व्रत को करके सौभाग्यवती महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।
वट के समान दीर्घायु हो पति —
पंडित रामगोविंद शास्त्री के अनुसार जिस प्रकार वट वृक्ष दीर्घायु माना जाता है। उसी प्रका वट वृक्ष से पति के भी दीर्घायु की कामना की जाती है। इस दिन गुड़ आटे को मिलाकर गोलाकर पकवान बनाए जाते हैं जिन्हें सुरा कहते हैं। इसमें सुरों की माला बनाकर वट वृक्ष को चढ़ाई जाती है। साथ ही एक माला को गले में पहना जाता है। इसके अलावा इस दिन भीगे हुए काले चने को और वट वृक्ष की ताजी कोंपलों को पानी के साथ निगलकर यह व्रत खोला जाता है।
वट सावित्री व्रत डेट 2022-
वट सावित्री व्रत 30 मई 2022 दिन सोमवार
अमावस्या तिथि 29 मई को दोपहर 02:55 मिनट से प्रारंभ
30 मई को शाम 05 बजे समाप्त
वट सावित्री व्रत का महत्व-
ऐसी मान्यता है कि इस दिन वट वृक्ष के नीचे बैठकर ही सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस ले लिए थे। वहीं एक और कथा के अनुसार भगवान शिव ने मार्कण्डेय ऋषि को वरदान दिया था जिसमें उन्हें इसी वट वृक्ष में पत्ते में पैर का अंगूठा चूसते हुए भगवान बाल मुकुंद के दर्शन भी हुए थे। तभी से वट वृक्ष की पूजा की जाने लगी है। आपको बता दें धार्मिक मान्यता अनुसार वट वृक्ष में मां लक्ष्मी का वास होता है।
पूजन सामग्री-
वट सावित्री व्रत की पूजन सामग्री में
सावित्री-सत्यवान की मूर्तियां
धूप
दीप
घी
बांस का पंखा
लाल कलावा
सुहाग का समान
कच्चा सूत
भिगोया हुआ चना
बरगद का फल
जल से भरा कलश
पूजा विधि-
सुबह घर की सफाई करके, नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान कर लें।
फिर पवित्र गंगा जल से पूरे घर में छिड़काव करें।
बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना करें।
ब्रह्मा के वाम पार्श्व में सावित्री की मूर्ति स्थापित करें।
तो वहीं दूसरी टोकरी में सत्यवान तथा सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करें।
इन टोकरियों को वट वृक्ष के नीचे ले जाकर रखें।
ब्रह्मा तथा सावित्री का पूजन करें।
सावित्री और सत्यवान की पूजा करते हुए बड़ की जड़ में पानी दें।
जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप आदि से पूजा करें।
जल से वटवृक्ष को सींचकर उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर 16 परिक्रमा करें।
भीगे हुए चनों का बायना निकालकर, नकद रुपए रखकर अपनी सास या बड़ों के पैर छूकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।
पूजा समाप्त होने पर ब्राह्मणों को वस्त्र तथा फल आदि वस्तुएं बांस के पात्र में रखकर दान करें।
सावित्री-सत्यवान की पुण्य कथा सुनें और दूसरों को भी सुनाएं।