BHOPAL: कोरोना की गति धीमी हुई है और अब चीजें सामान्य हो रहीं हैं।वहीं अप्रैल माह की शुरुआत के साथ ही स्टेट बोर्डस जैसे की MP BOARD इत्यादि के रिजल्ट्स आ गए हैे।और धीरे-धीरे और बोर्डस के आना शुरू हो गए हैं,और कई जगहों के आना अभी बांकी हैं।ऐसे में माता-पिता के साथ बच्चों के अंदर ये सवाल फिर से उठ खड़ा हुआ है कि कोटा जायें या नहीं। क्योंकि कोरोना से आई मंदी,बच्चों पर बढ़ता दबाव,कैरियर की टेंशन और सबसे बड़ी बात दूसरों को देखकर जीने की अंधी दौड़ लॉकडाउन के बाद फिर भारी पड़ रही है। ऐसे में हम पूरी कोशिश करेंगे कि इस आलेख के माध्यम से आप की हर समस्या का समाधान कर सकें।KOTA COACHING REAL TRUTH
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सामान्य जानकारियां-
डेढ़ से 5 लाख रुपए एक छात्र का एक वर्ष का खर्च आता है
यूपी, एमपी से कोटा आने वाले छात्र यहां प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में डेढ़ से 5 लाख रुपये तक प्रति वर्ष खर्च करते हैं। कुछ ऐसे छात्र जिनकी हैसियत इतनी नहीं होती, जिनके पैरेंट्स लोन या उधार लेकर कोटा भेजते हैं वो छात्रों पर अनुचित दबाव भी डालते हैं कि अगर वो सफल नहीं हुए तो क्या होगा। ऐसा भी देखा गया है कि शुरुआती दौर में अगर कोई छात्र प्रतियोगी परीक्षा में सफलता हासिल नहीं कर पाता तो उस पर और दबाव पड़ने लगता है।KOTA COACHING REAL TRUTH
हर साल लगभग 2 लाख छात्र आते हैं कोटा
हर साल तकरीबन दो लाख से ज्यादा छात्र कोटा में विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने आते हैं।हलाकि ल़ॉकडाउन और कोरोना संकट के बीच यह संख्या घटी है। इनमें से अधिकांश राजस्थान के बाहर के होते हैं। इनकी जरूरतें पूरी करने के लिए यहां बाजार डिवेलप हो गए हैं। कोटा में इसी को लेकर बहुत सारे घर, अपार्टमेंट, कॉम्प्लेक्स, रेस्टोरेंट, फूड जॉइंट खुल गए हैं जो छात्रों के बल पर चल रहे हैं। इससे यहां पर कोचिंग का एक वातावरण तैयार हो गया है। KOTA COACHING REAL TRUTH
सफलता का रेसियो है लगभग कुछ परसेंटेस
आपको पता होना चाहिए कि कोटा जितने छात्र आते हैं उनमें से कुछ ही फीसदी सफल होते हैं।बाकी वही खाली हांथ लौटकर चले जाते हैं।कई बार देखा गया है कि कोचिंग संस्थान दूसरे कोचिंग या सफल बच्चों को पैसे की लालच देकर अपने यहां फर्जी फोटो छापते हैं।हालाकि अब जनता ये बात समझने लगी है।
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बुराईयां
2018 में 15 छात्रों ने की थी आत्महत्या
साल 2018 में मीडिया सूत्रों के मुताबिक करीब 15 से ज्यादा छात्रों ने कोटा में अपनी जान दे दी। इनमें से कुछ छात्र यूपी बिहार के ऐसे परिवारों से थे जिनके पैरंट्स ने लोन लेकर या जमीन जायदाद गिरवी रखकर उन्हें कोचिंग के लिए कोटा भेजा था। ऐसे में उनके ऊपर कभी-कभी दबाव भी होता था। कई छात्रों ने इंडिया टुडे को बताया कि प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए जिस तरह की तार्किकता की जरूरत होती है उस तरह प्राइमरी और सेकंडरी की कक्षाओं में बताया ही नहीं जाता। कई प्रदेशों की शिक्षा में इस तरह की कमी देखी जाती है लेकिन ऐसे छात्र जब तैयारी के लिए कोटा आ जाते हैं तो उन्हें अलग मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।KOTA COACHING REAL TRUTH
कोटा को ही सफलता का पर्याय माना जाने लगा है
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल समेत देश के विभिन्न राज्यों के लाखों छात्र यहां अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए आते हैं। देखा गया है कि कुछ राज्यों के सिलेबस अलग होते हैं। प्राइमरी और सेकंडरी लेवल की शिक्षा की गुणवत्ता में भी अलग-अलग राज्यों में अंतर होता है। क्षमता न रहते हुए भी छात्र पर दबाव बनाया जाता है कि वह प्रतियोगिता में सफल हों। इसका परिणाम गलत निकलता है।
भारी पड़ जाती हैं मां-बाप की अपेक्षाएं
लाखों छात्र यहां विभिन्न परीक्षाओं जैसे आईआईटी और एम्स की तैयारी करते हैं, लेकिन इनमें से बहुत ऐसे होते हैं जिनमें प्रतियोगिता में सफल होने की क्षमता नहीं होती। कई बार ऐसा होता है कि दूर रह रहे मां-बाप की अपेक्षाओं की नीचे छात्र दब जाते हैं। घर से दूर रहते हुए उन्हें कोई भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक दबाव के चलते संकट की घड़ी में वो सोच ही नहीं पाते कि उन्हें आखिर करना क्या चाहिए। अत्यधिक दबाव और तनाव को दूर करने का उपाय न जानने के कारण कई युवा ऐसा कदम उठा लेते हैं जिसमें उनका जीवन ही खत्म हो जाता है।
कई छात्रों का बेस होता है कमजोर फिर भी जिद में आते हैं
यूपी से आकर IIT की तैयारी करने आये एक छात्र ने बताया कि सबसे बड़ी बात यह है कि कई छात्रों की पढ़ाई का बेस ही बहुत कमजोर होता है। यानी की 10वीं और 11वीं की पढ़ाई में ही वो पिछड़े होते हैं। आईआईटी के लिए जिस तरह के क्वॉलिटी एजुकेशन की जरूरत होती है वह उनके पास होती ही नहीं। कोचिंग क्लास में बहुत से छात्र होते हैं। पढ़ाई में कमजोर छात्र वहां संकोचवश सवाल भी नहीं कर पाता। धीरे-धीरे वह और पिछड़ता जाता है और डिप्रेशन में चला जाता है। KOTA COACHING REAL TRUTH
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अच्छाईयां
वैसे ऐसा नहीं है कि कोटा में जाकर सिर्फ बर्बादी ही मिलती है ।यहां पहुंचकर न जाने कितने ही बच्चों का जीवन सुधरा है ।आज वो बच्चे देश-विदेश में करोंडों की कमाई कर रहे हैं। जिदगी में कुछ बेकार नहीं होता आप वहां से कुछ न कुछ सीखते ही हैं।लेकिन सीखते आप तभी हैं जब आप जी जान लगाकर बढ़ते हैं न कि मां-बाप के पैसों पर मौज काटते हैं।
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बच्चों को भेजने से पहले क्या करें माता-पिता
दूसरों के बच्चों को देखकर न भेजे माता-पिता
अक्सर ये देखा गया है कि माता-पिता दूसरों के बच्चों को देखकर कोटा भेजते हैं या फिर कोई सफल उदाहरण की नकल देखकर कोटा भेजते हैं। जो कि सरासर गलत है।और यही हाल बच्चों का है कि वो भी अपने साथियों को देखकर या फिर मजे करने के हिसाब से जाते हैं जबकि आपको हम बता दें जेई एड़वांस विश्व का दूसरा सबसे कठिन एक्जाम है।
पहले स्क्रीनिंग हो, दिक्कत होने पर काउंसलिंग
कई डॉक्टरों का कहना है कि जो छात्र कोटा आकर तैयारी करना चाहते हैं। सबसे पहले उनकी स्क्रीनिंग होनी चाहिए कि उनमें योग्यता है या नहीं, कहीं उनके अवसाद का कोई इतिहास तो नहीं, मनोवैज्ञानिक रूप से वो मजबूत हैं या नहीं। अगर छात्र उस फील्ड के लिए फिट नहीं है तो उसकी कैरियर काउंसलिंग होनी चाहिए, उसे बताया जाना चाहिए कि वह दूसरी फील्ड के लिए योग्य है। दूसरा, बच्चों को गाइड करने वाले क्लिनिक खुलने चाहिए जिससे समय-समय पर उन्हें सहायता मिलती रहे।KOTA COACHING REAL TRUTH
‘पढ़ने भेजें, न बनाएं रिजल्ट का दबाव‘
कभी-कभी छात्रों पर इतना ज्यादा दबाव पड़ने लगता है कि मुश्किल हो जाती है। ‘हम पैरेंट्स को यह समझाने का प्रयास करते हैं कि अगर आपने बच्चे की पढ़ाई पर पैसे खर्च किए हैं तो उसके बदले में उस पर रिजल्ट का दबाव मत बनाइए’।
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कोटा के क्या हैं विकल्प
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