बिरयानी का नाम सुनते ही कई लोगों के मुंह में पानी आ जाता होगा। हमारे यहां वेज और नॉनवेज बिरयानी की ढेरों वैराइटीज बनाई जाती हैं। स्थान बदलते ही बिरयानी का स्वाद भी बदल जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि बिरयानी एक विदेशी फू़ड डिश है जो भारत आने के बाद अपने स्वाद की वजह से लोगों की पसंद बन गई। आइए जानते हैं बिरयानी भारत तक कैसे पहुंची।biryani history
बिरयानी का इतिहास खंगालने पर पाया गया कि बिरयानी को लेकर कयास ज्यादा हैं, कन्फर्मेशन कम। कहा गया कि बिरयानी शब्द की उत्पत्ति पर्शियन (ईरानी) शब्द ‘बिरंज बिरयान’ से हुई है। पर्शियन भाषा में चावल को बिरिंज कहते हैं और बिरयान का अर्थ है पकाने से पहले फ्राई किया गया। वैसे खानपान एक्सपर्टस का यह भी कहना है ईरान में बिरयान का मतलब है रूमाली रोटी पर गोश्त, जबकि भारत में बिरयानी का मतलब है चावल के साथ गोश्त। कहा यह भी गया कि मुगल बादशाह शाहजहां की बेगम मुमताज महल ने जब सैनिक छावनी का दौरा किया तो उन्हें सैनिक कमजोर दिखाई दिए। उन्होंने शाही बावर्ची से सैनिकों के लिए चावल, गोश्त और मसालों की स्पेशल डिश बनाने के लिए कहा, जो बिरयानी कहलाई। लेकिन इतिहास की किताबों में कहीं यह दर्ज नहीं है कि मुमताज को युद्ध या खानपान में रुचि थी।
एक तर्क यह भी है कि तुर्क बादशाह तैमूर हिंदुस्तान में बिरयानी को लेकर आया। दूसरा तर्क यह है कि अरब के जो सौदागर दक्षिण भारतीय तट पर व्यापार के लिए उतरे, वह अपने साथ बिरयानी की रेसिपी आए। सुरक्षा के लिए ये सौदागर अपने साथ फौजी भी लाते थे। हम मान सकते हैं बिरयानी डिश जल्द बनाया जाने वाला ऐसा भोजन है जो पौष्टिकता से भरपूर है और इसका संबंध सिपाहियों से जरूर जुड़ा है, जिन्हें बहुत कम समय में बनने वाला पौष्टिक भोजन चाहिए। यही भोजन बिरयानी कहलाया। पुरानी बातें यह भी जाहिर करती हैं कि बिरयानी का एक स्वाद मुगलों के जरिए भारत आया तो दूसरे ने अरब व्यापारियों द्वारा दक्षिण भारत में प्रवेश किया। यह दोनों बिरयानी आज भी भारत में धूम मचाए हुए है।biryani history