मुंबई। बंबई उच्च न्यायालय ने बुधवार को महाराष्ट्र सरकार से पूछा कि क्या कोविड-19 महामारी के दौरान जेलों में कैदियों के लिये वॉयस और वीडियो कॉल की सुविधा के इस्तेमाल के दौरान सुरक्षा भंग होने की कोई घटना हुई थी। अदालत ने साथ ही यह भी पूछा कि इस सुविधा को बंद क्यों कर दिया गया।
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति वी. जी. बिष्ट की खंडपीठ ने कहा कि वह तत्काल वीडियो और वॉयस कॉल सुविधाओं को फिर से शुरू करने की अनुमति देने के संबंध में कोई आदेश पारित करने की इच्छुक नहीं है, क्योंकि राज्य सरकार को पहले हलफनामा दायर करने का अवसर दिया जाना चाहिए। अदालत एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें जेल में बंद कैदियों के लिये उनके परिवारों और कानूनी सलाहकारों के साथ संवाद करने को लेकर वॉयस और वीडियो कॉल की सुविधा फिर से शुरू करने की अपील की गई थी।
एनजीओ ‘पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज’ द्वारा दाखिल याचिका में दावा किया गया है कि जेल के कैदियों के लिये वॉयस और वीडियो कॉल की सुविधा को 2021 में मनमाने ढंग से और अचानक बंद कर दिया गया। याचिका के अनुसार जुलाई 2020 में कोविड-19 महामारी के बीच, जेलों ने कैदियों के लिये वॉयस और वीडियो कॉल की सुविधा शुरू की थी। अदालत ने राज्य सरकार की ओर से पेश महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोणी से यह बताने के लिये कहा कि सुविधा को बंद क्यों किया गया और क्या महामारी के दौरान इस सुविधा को उपलब्ध कराने के दौरान सुरक्षा उल्लंघन की कोई घटना सामने आई थी।
कुंभकोणी ने अदालत को सूचित किया कि वह इस मामले पर महानिरीक्षक (कारागार) से निर्देश मांगेंगे। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि सुरक्षा भंग की आशंका थी, क्योंकि यह जानना मुश्किल होता था कि कैदी किससे बात कर रहे हैं।