कांग्रेस पार्टी के वरिष्ट नेता, रणनीतिकार और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को दिग्गी राजा के नाम से संबोधित किया जाता है। साल 1980 में दिग्विजय सिंह को यह नाम तब दिया गया था जब वह लोकसभा के सासंद थे। 1984 में देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे उस दौरान उन्होंने देशभर में से कुछ युवा नेताओं को अपने कोर ग्रुप में शामिल किया था जिनमें दिग्विजय सिंह का नाम भी शामिल था। एक दिन दिल्ली में एक डिनर पार्टी का आयोजन किया गया था जिसमें देश के तमाम नेता और कुछ पत्रकारों को भी आमंत्रित किया गया था। पत्रकारों में एक मशहूर अखबार के संपादक आर के करंजिया भी थे। पार्टी में पत्रकार करंजिया की मुलाकात दिग्विजय सिंह से हुई थी लेकिन करंजिया दिग्विजय सिंह के नाम का उच्चारण सही से नहीं कर पा रहे थे इसलिए उन्होंने पार्टी में उन्हें दिग्गी राजा कहकर संबोधित कर दिया था। क्योंकि पत्रकार करंजिया वृद्ध थे और उन्हें दिग्गी राजा बोलने में आसानी हो रही थी। तभी से दिग्गी राजा शब्द दिग्विजय सिंह के नाम से जुड़ गया था और अखबारों की हैडलाइनों में दिग्गी राजा तेजी से छापने लगा। हालांकि दिग्विजय सिंह को यह नाम पसंद नहीं था।
दिग्गी के सीएम बनने की दिलचस्प कहानी
दिग्विजय सिंह के दिग्गी राजा नाम की कहानी जितनी दिलचस्प है, उतनी ही उनके मुख्यमंत्री बनने की कहानी दिलचस्प है। बात साल 1992 की है। जब बाबरी मस्जिद टूटने के बाद मध्यप्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था। उस समय मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष दिग्विजय सिंह थे। उस समय हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने बहुमत हांसिल कर लिया था बस सरकार बनने की देरी थी। ऐसे में माधवराव सिंधिया, श्यामाचरण शुक्ल, सुभाष यादव और कमलनाथ जैसे नेता सीएम बनने की रेस में थे। अर्जुन सिंह सुभाष यादव को सीएम बनाने के लिए विधायकों को सेट कर रहे थे तो वही केंन्द्र में सिंधिया अपनी गोटियां फीट कर रहे थे। सीएम पद को लेकर विधायक दल की बैठक बुलाई गई। बैठक में प्रणव मुखर्जी, सुशीलकुमार शिंदे और जनार्दन पुजारी आलाकमान के पर्यवेक्षक बनकर आए थे। बैठक में जब अर्जुन सिंह ने देखा की सुभाष यादव को समर्थन नहीं मिल रहा तो वह बैठक में किसी पिछड़े को मुख्यमंमत्री बनाने की बात बोलकर बैठक से निकल गए।
दिग्गी राजा ने जमाई फील्डिंग
बैठक में कई नेता अपनी दावेदारी पेश कर रहे थे लेकिन दिग्विजय चुपचाप अपनी बड़ी सफाई से अपनी फील्डिंग जमाते रहें। दिग्विजय सिंह ने हर विधायक से संपर्क साधा। इतना ही नहीं दिग्गी राजा ने कई विधायकों से लिखित आश्वासन तक ले लिया था। जब विधायक दल की बैठक में किसी नाम पर सहमति नहीं बनी तो पर्यवेक्षक बनकर आए प्रणव मुखर्जी ने गुप्त मतदान कराने का फैसला किया। गुप्त मतदान के समय हॉल में दिग्विजय सिंह और उनके निजी सचिव राजेंद्र रघुवंशी गैर-विधायक मौजूद रहे।
दिग्गी को मिला अपार समर्थन
गुप्ता मतदान के बाद जब मतगणना की गई तो कांग्रेस के 174 विधायकों में से 56 विधायकों ने श्यामाचरण शुक्ला को समर्थन दिया तो वही दिग्विजय सिंह को 100 विधायकों का समर्थन मिला। जैसे ही वोटिंग के नतीजे आए तो कमलनाथ टेलीफोन की ओर भागे और दिल्ली आलाकमान को इसकी जानकारी दी। कुछ ही समय बाद प्रणव मुखर्जी के पास तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव का फोन आया। राव ने मुखर्जी से कहा कि जिसे ज्यादा विधायकों का समर्थन मिले, उसे ही मुख्यमंत्री बनना चाहिए। इसके बाद श्यामाचरण शुक्ल ने दिग्विजय के नाम का प्रस्ताव किया और उन्हें सर्वसम्मति से मुख्यमंत्री चुन लिया गया।