हंडिया/सैदपुर। संदाहा गांव में जाटव पुरुषों के एक समूह का कहना है कि ‘बहन जी’ परिवार की मुखिया हैं और परिवार हम सब हैं। इन लोगों ने साथ ही इस बात पर भी जोर दिया कि मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को उनका वोट किसी एक चुनाव के लिए नहीं है, बल्कि यह पार्टी को मजबूत रखने के लिए है।कर्नाटक के एक एनआईटी में पढ़ने वाले विशाल कुमार ने सबसे बड़े दलित समुदाय की ओर इशारा करते हुए सवाल किया, ‘‘अगर हम इसे वोट नहीं देंगे, तो कौन देगा।’’
अखिलेश यादव की ओर प्रतीत होता है
उत्तर प्रदेश में इस दलित समुदाय की जनसंख्या करीब 11-12 प्रतिशत होने का अनुमान है और इसे पार्टी का सबसे निष्ठावान समर्थक माना जाता है। राजधानी दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के पश्चिमी किनारे से लेकर राज्य के पूर्वी हिस्से तक, बसपा के साथ उसके मूल मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा प्रतीत होता है, लेकिन फिर भी इसके भी संकेत हैं कि उनमें से कुछ अन्य विकल्पों पर विचार कर रहे हैं। 403 सदस्यीय राज्य विधानसभा के लिए चुनाव में समाजवादी पार्टी को ज्यादातर सीटों पर भाजपा की मुख्य चुनौती के रूप में देखा जा रहा है। कई जगहों पर समुदाय के युवा सदस्य, रोजगार के अवसरों की कमी के लिए भाजपा की आलोचना करते हैं और उनका झुकाव समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव की ओर प्रतीत होता है।
दिहाड़ी काम पर निर्भर हैं
हठौड़ा गांव में, 22 वर्षीय सूरज कुमार और उनके युवा मित्रों ने सेना या अन्य केंद्रीय पुलिस बलों में कुछ वर्षों से भर्ती की कमी की आलोचना की और आशंका व्यक्त की कि जल्द ही वे भर्ती के लिए निर्धारित आयु पार कर जाएंगे। उन्होंने कहा कि सीआरपीएफ में काम करने वाले उनके बड़े भाई की मदद की बदौलत ही उनके परिवार का गुजारा होता है। उन्होंने कहा, ‘‘जीवन में बहुत कठिनाई है।’’ हालांकि, इसके खिलाफ भी विचार हैं।समुदाय के कई सदस्य अपने गुजारे के लिए दिहाड़ी काम पर निर्भर हैं, जो कोविड -19 महामारी के दौरान बहुत प्रभावित हुआ है।
हमें अन्य के साथ बराबरी दिलायी
कुछ ने केंद्र और राज्य में भाजपा सरकारों की मुफ्त राशन योजना पर अपनी प्रसन्नता जतायी। वे सपा सरकार से आशंकित भी हैं।फल-विक्रेता मनोज कुमार समाजवादी पार्टी का हवाला देते हुए कहते हैं, ”जब वे सत्ता में होते हैं तो हमारे लिए शांति से रहना मुश्किल होता है।’’ भाजपा ने लखनऊ में पार्टी के पिछले कार्यकाल को लगातार कानून-व्यवस्था की समस्याओं से जोड़ा है, यह एक ऐसा आरोप है जिसका असर मतदाताओं के एक बड़े वर्ग पर प्रतीत होता है। हालांकि यह भी स्पष्ट है कि बसपा वह पार्टी है जिसे वे अपना मानते हैं।वह कहते हैं, ‘‘’मायावती का शासन सख्त प्रशासन और कानून-व्यवस्था पर उनके नियंत्रण के लिए जाना जाता था। उनके शासन के दौरान कोई जातिवाद नहीं होता। उन्होंने हमें सम्मान दिलाने के लिए कार्य किया और हमें अन्य के साथ बराबरी दिलायी।’’
अन्य समुदायों के मजबूत उम्मीदवार हैं
भाजपा और समाजवादी पार्टी के कुछ नेताओं ने स्वीकार किया कि जाटव मतदाताओं पर बसपा की पकड़ इतनी मजबूत है कि उनके कार्यकर्ता उनके गांवों में प्रचार करना समय की बर्बादी मानते हैं। बसपा ने समाजवादी पार्टी की तुलना में अधिक मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा है, लेकिन प्रयागराज पश्चिम जैसी सीटों पर भी, जहां बसपा का उम्मीदवार मुस्लिम है, जबकि सपा का नहीं है, अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों का विश्वास अखिलेश यादव के उम्मीदवार पर प्रतीत होता है।राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बसपा के पास उन सीटों पर अच्छा मौका होगा जहां उसके पास अन्य समुदायों के मजबूत उम्मीदवार हैं।
परिणामों की प्रतीक्षा करें
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में दलितों के बीच बसपा की ताकत को स्वीकार करते हुए कहा था कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बसपा की प्रासंगिकता बनी हुई है और उसे दलित व मुस्लिमों का वोट मिल रहा है। इस टिप्पणी को कुछ लोग महत्वपूर्ण मान रहे हैं क्योंकि हो सकता है कि भाजपा मान रही हो कि पार्टी को पूरी तरह से हाशिए पर रखना उसके लिए अनुकूल नहीं है। बहुजन वॉलंटियर फोर्स के साथ काम करने वाले कर्मराज गौतम ने मायावती की एक रैली स्थल पर कहा, ‘‘बहन जी रणनीतिक कारण से सुर्खियों से दूर हैं। वह प्रतिद्वंद्वियों को असमंजस में डालकर चुनाव लड़ रही हैं। परिणामों की प्रतीक्षा करें।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमारे लिए बहुजन समाज पार्टी हमारी पहचान का हिस्सा है।’’