पुणे। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने सोमवार को कहा कि प्रसिद्ध समाज सुधारक और शिक्षाविद सावित्री बाई फुले अपने आप में ‘विश्वविद्यालय’ थीं और उनकी दी हुई शिक्षा को आगे बढ़ाने की जरूरत है। ठाकरे ने साथ ही कहा कि विभिन्न धर्मों और समुदायों के सदस्यों के बीच कोई टकराव नहीं होना चाहिए। सावित्री बाई फुले पुणे विश्वविद्यालय (एसपीपीयू) के परिसर में 19वीं सदी की समाज सुधारक की प्रतिमा के अनावरण के लिए ऑनलाइन आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए ठाकरे ने उक्त बातें कहीं। विश्वविद्यालय परिसर में स्थित 13 फुट ऊंची इस प्रतिमा का अनावरण महाराष्ट्र के राज्यपाल और राजकीय विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति भगत सिंह कोश्यारी ने किया। ठाकरे और विपक्ष के नेता देवेन्द्र फडणवीस ने कार्यक्रम में ऑनलाइन हिस्सा लिया वहीं उच्च और तकनीकी शिक्षा मंत्री उदय सामंत, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री छगन भुजबल, गृह मंत्री दिलीप वलसे पाटिल और विधान परिषद की उपसभापति नीलम गोरहे सहित अन्य कई लोग मौके पर मौजूद थे।
इसका पालन कौन करेगा?
ठाकरे ने कहा, ‘‘यह ऐसी घटना है जिस पर हमें गर्व होना चाहिए। 2014 में पुणे विश्वविद्यालय का नाम बदलकर उनके (फुले के) नाम पर रखा गया और अब उनकी प्रतिमा का अनावरण किया गया है… लेकिन वह अपने आप में विश्वविद्यालय थीं, जिन्होंने अपने पति महात्मा फुले के साथ समाज की बेहतरी के लिए काम करने का फैसला लिया।’’ उन्होंने कहा कि फुले द्वारा दी गई शिक्षा को आगे ले जाया जाना चाहिए। ठाकरे ने कहा कि विभिन्न धर्मों और समुदायों के सदस्यों के बीच कोई झगड़ा नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘हम राजनेता जब एक मंच पर आते हैं तो इस बारे में बात करते हैं, लेकिन इसकी शुरुआत कौन करेगा, इसका नेतृत्व कौन करेगा और इसका पालन कौन करेगा?’’ मुख्यमंत्री ने कहा कि फिलहाल एक-दूसरे के खिलाफ मतभेद जैसे हालात हैं।
समुदायों के बीच नफरत खत्म हो जाएगी
उन्होंने कहा, ‘‘इस अवसर पर, अगर हम तय करते हैं कि इन सभी समाज सुधारकों और हस्तियों के द्वारा दी गई शिक्षा का पालन करेंगे और अपने देश को आगे ले जाएंगे… अगर ऐसा होता है तो, समुदायों के बीच नफरत खत्म हो जाएगी।’’ कोश्यारी ने अपने भाषण में कहा कि सावित्री बाई फुले और महात्मा फुले ने महिलाओं के सशक्तिकरण और शिक्षा के लिए काम करने का फैसला किया। उन्होंने कहा कि दोनों पति-पत्नी ने समाज की प्रतिगामी कुरीतियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी, जो तत्कालीन ब्रिटिश शासन के कारण बहुत मुश्किल थी।