Indian Railways: भारतीय रेलवे हाई स्पीड ट्रेन्स के लिए अब अत्यधिक एलिवेटेड ट्रैक्स बनाने की तैयारी में है। इसके लिए विचार-विमर्श भी शुरू हो चुका है। जापान और फ्रांस की तर्ज पर देश में पहले भी एलिवेटेड ट्रैक बनाया गया है। अब आपके मन में यह सवाल जरूर उठ रहा होगा कि यह एलिवेटेड ट्रैक क्या है और यह दूसरे रेलवे ट्रैक से कैसे अलग है? चलिए जानते हैं।
कहां किया जाता है एलिवेटेड संरचना का इस्तेमाल?
दरअसल, एलिवेटेड रेलवे ट्रैक एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें रेलवे ट्रैक के लिए सड़क के ऊपर एक एलिवेटेड संरचना का इस्तेमाल किया जाता है। एलिवेटेड संरचना का इस्तेमाल रेलवे के ब्रॉड-गेज, स्टैंडर्ड-गेज या नैरो-गेज, लाइट रेल, मोनोरेल या एक सस्पेंशन रेलवे के लिए की जा सकती है। एलिवेटेड रेलवे ट्रैक आमतौर पर भीड़-भाड़ वाले इलाके या शहरी क्षेत्रों में बनाए जाते हैं। साथ ही जहां कई रेलवे क्रॉसिंग्स, लंबे सड़क जामों के कारण दुर्घटनाएं होती है, वहां एलिवेटेड संरचना का इस्तेमाल किया जाता है।
इन देशों में पहले से है एलिवेटेड नेटवर्क
बता दें कि जापान, कोरिया, ताइवान, चीन और यूरोप के कई देशों में एलिवेटेड नेटवर्क हैं। खासकर चीन की बात करें तो चीन में यात्री नेटवर्क एलिवेटेड है और कार्गो के लिए ग्राउंड नेटवर्क का उपयोग किया जाता है। भारत में भी देश के पहले 4.8 किलोमीटर लंबे एलिवेटेड रेलवे ट्रैक का निर्माण हरियाणा के रोहतक में कराया गया है। रोहतक-गोहाना रेलवे लाइन पर एलिवेटेड ट्रैक के निर्माण पर 315 करोड़ रूपए की लागत आई है। इससे रोहतक शहर में भीड़-भाड़ से निजात मिल गई।
एलिवेटेड रेलवे ट्रैक की खासियत
बता दें कि दुनिया का सबसे पहला एलिवेटेड रेलवे ट्रैक लंदन और ग्रीनविच के बीच 1836 और 1838 के बीच बनाया गया था। वहीं साल 1860 के आस-पास अमेरिकी शहरों में एलिवेटेड रेलवे लोकप्रिय हुआ। एलिवेटेड ट्रैक की खासियत यह है कि इससे सड़क जाम की समस्या खत्म होती है। साथ ही सड़क दुर्घटना और रेल दुर्घटना पर काबू पाया जा सकता है। इसके अलावा एक साथ कई रेलवे क्रॉसिंग्स पर रेलवे ट्रैफिक की समस्या खत्म होती है। यही नहीं एलिवेटेड संरचना के लिए भूमि अधिग्रहण करने की जरूरत भी नहीं होती है। कुल मिलाकर कहें तो एलिवेटेड रेलवे ट्रैक सुरक्षित और बाधारहित है।