नई दिल्ली। समय इतनी तेजी से बदल रहा है कि लोग अब खाली नहीं बैठना चाहते। हम से कई लोग दौड़ती-भागती जिंदगी में एक साथ दो काम करते हैं। जैसे खाना खाते-खाते फोन कॉल्स पर बात करना, सफर के दौरान ऑफिस का काम निपटाना आदि। ऐसा हम इसलिए करते हैं ताकि हमारा फालतू टाइम बर्बाद न हो। आपने फ्लाइट में कई लोगों को देखा होगा कि सफर के दौरान वो लैपटॉप पर काम करते रहते हैं। कई लोग तो अपने साथ नोटपैड और पेन भी साथ लेकर चलते हैं और अपने काम में मशगूल रहते हैं।
लेकिन क्या आपने कभी गौर किया है कि फ्लाइट में काम करने वाले सभी लोग बॉल पेन का इस्तेमाल करते हैं। अगर जनाते हैं तो अच्छी बात है अगर नहीं जानते तो अगली बार इस चीज पर गौर करिएगा। क्योंकि फ्लाइट में सवार यात्रियों को फाउंटेन पेन ले जाने की अनुमति नहीं है। ऐसा क्यों किया जाता है आइए जानते हैं।
फाउंटेन पेन ले जाना मना क्यों है?
दरअसल, हम सब जानते हैं कि हवाई जहाज काफी उंचाई पर उड़ान भरते हैं। ऐसे में बढ़ती उंचाई के साथ वायुमंडलीय दबाव कम हो जाता है, इसलिए पेन के अंदर का दबाव, उसके आसपास के दबाव (यानी उड़ान के अंदर) की तुलना में अधिक होता है। इंसानी शरीर इस डिफरेंस को आसानी से महसूस कर पाता है। लेकिन कार्बनिक पदार्थ होने के कारण प्लेन की उंचाई से सबसे ज्यादा पेन का अंदरूनी हिस्सा प्रभावित होता है। प्रेशर पड़ने के चलते पेन की स्याही इसकी निब के पास जमा हो जाती है और पने लीक करने लगता है।
बॉल पेन उंचाई पर आसानी से काम करता है
वहीं बॉल पेन पारंपरिक फाउंटेन पेन के विपरीत अधिक ऊंचाई पर भी आसानी से काम करता है। बॉल पेन का आविष्कार 1931 में ‘लोडिस्लाओ जोस बिरो’ ने किया था। इस कलम को ‘बिरो पेन’ के नाम से भी जाना जाता है। जोस बिरो, फाउंटेन पेन से लिखते समय होने वाले धब्बों से बहुत परेशान थे। ऐसे में उनके मन में एक ऐसा पेन बनाने का विचार आया जिसकी स्याही जल्दी सूख जाती हो और लिखने पर धब्बे भी न पड़े। उन्होंने सबसे पहले BallPoint निब का आविष्कार किया। जब निब का कागज से संपर्क होता था तो इसकी गेंद घूमने लगती थी।
ब्रिटेन की रॉयल एयर फोर्स ने की थी पहली खरीदारी
इस पेन का सबसे पहला खरीदार ब्रिटेन का रॉयल एयर फोर्स था। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटेन एयर फोर्स ने 30 हजार बिरो पेन के ऑर्डर दिए थे। क्योंकि यह पेन अधिक उंचाई पर भी आसानी से काम करता था। वहीं फाउंटेन पेन के लीक होने का खतरा अधिक रहता है, इस कारण से एयरलाइन कंपनियां इसे कैरी करने की इजाजत नहीं देती है।