उज्जैन: मध्य प्रदेश की धार्मिक राजधानी के रूप में विख्यात उज्जैन में सैकड़ों मंदिर हैं। यहां भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकाल मंदिर भी स्थित है। लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि यहां प्राचीन कालीन सरस्वती मंदिर भी है। जहां माता को नील स्याही से अभिषेक किया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से ज्ञान की देवी सरस्वती प्रसन्न होती हैं।
विद्यार्थी कामना करने आते हैं
परीक्षा से पहले आने वाली बसंत पंचमी पर यहां दिनभर विद्यार्थियों की भीड़ नजर आती है। विद्यार्थी उच्च अंक प्राप्त करने के लिए माता के मंदिर में कामना करते हैं। इस मंदिर को मां वाग्देवी के नाम से जाना जाता है जो सिंहपुरी में बिजासन पीठ के सामने हैं। लोग इस मंदिर को स्याही माता के मंदिर के नाम से भी जानते हैं। बसंत पंचमी पर यहां मां सरस्वती की जयंती मनाई जाती है। इस दिन दूरदराज से भक्त पहुंचते हैं।
इस कारण से चढाते हैं स्याही
हिंदू सनातर धर्म के 16 संस्कारों में से एक विद्यारंभ संस्कार को बसंत पंचमी के दिन किया जाता है। संगीत की गुरू-शिष्य परंपरा में भी बसंत पंचमी का विशेष महत्व है। शास्त्रों में कहीं-कहीं मां सरस्वती को नीलवर्णी भी कहा गया है। भगवान विष्णु से आदेशित होकर नील सरस्वती भगवान ब्रह्ना के साथ सृष्टिके ज्ञान कल्प को बढ़ाने का दायित्व संभाले हुए हैं।
एक हजार साल पुरानी है यह मूर्ति
पहले लोग माता सरस्वती के पूजन में नील कमल और अष्टर के नीले फूलों का उपयोग करते थे। इन फूलों के अर्क से देवी का अभिषेक किया जाता था। लेकिन समय के साथ इसमें परिवर्तन आया और फूलों के अर्क का स्थान नीली स्याही ने ले लिया। माना जाता है कि माता की यह मूर्ति एक हजार साल पुरानी है और अपने आप में अनूठी है।