लखनऊ। गोरखपुर जिले में बतौर मुख्यमंत्री विधानसभा चुनाव लड़ने वाले योगी आदित्यनाथ दूसरे नेता होंगे। उनसे पहले, वर्ष 1971 में त्रिभुवन नारायण सिंह ने मुख्यमंत्री रहते हुए गोरखपुर जिले की मानीराम विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था। हालांकि वह हार गए थे। एक ओर जहां विपक्षी दल योगी के खिलाफ, उनके उम्मीदवार बनने के बाद तीखी प्रतिक्रिया शुरू करते हुए मुख्यमंत्री के रूप में त्रिभुवन नारायण सिंह के चुनाव हारने का उदाहरण दे रहे हैं, वहीं गोरखपुर के आम निवासी बतौर मुख्यमंत्री योगी के चुनाव लड़ने से विकास की उम्मीद जता रहे हैं। गोरखपुर निवासी और ‘‘उत्तर प्रदेश प्रधानाचार्य परिषद’’ के प्रदेश महामंत्री रविंद्र त्रिपाठी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा ‘‘योगी ने गोरखपुर में विकास को नया आयाम दिया है। उनके चुनाव जीतने से गोरखपुर में विकास की गंगा बहेगी और यही समय की मांग है।’’ गोरखपुर निवासी अवनीश कुमार राय पिंटू ने कहा ‘‘योगी के पक्ष में एकतरफा माहौल है और गोरखपुर से उनके उम्मीदवार घोषित होने से जनता में खुशी की लहर है।’’
इनकी वापसी की टिकट कट गयी है
योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर सदर सीट से शनिवार को भारतीय जनता पार्टी का प्रत्याशी बनाये जाने के बाद राजनीतिक दलों की मिश्रित प्रतिक्रिया आई। राज्य की मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने ट़्वीट किया ” कभी कहा मथुरा — कभी कहा अयोध्या — और अब कह रहे हैं गोरखपुर — जनता से पहले इनकी पार्टी ने ही इनको वापस घर भेज दिया है– दरअसल इनको टिकट मिली नहीं है, इनकी वापसी की टिकट कट गयी है।” बीते दिनों भाजपा के राज्यसभा सदस्य हरनाथ सिंह यादव ने नेतृत्व को पत्र लिखकर योगी को मथुरा सीट से विधानसभा चुनाव लड़ाने की मांग की थी जबकि मीडिया में योगी के अयोध्या से चुनाव लड़ने की अटकलें थीं। गोरखपुर से योगी के उम्मीदवार घोषित होने और विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया के बीच रविवार को भाजपा ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट़्वीट किया ”हमारे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से चुनाव लड़ रहे हैं। बुआ (मायावती), बबुआ (अखिलेश यादव) और मिसेज वाद्रा जी (प्रियंका गांधी वाद्रा) को बताना चाहिए कि आप किस किस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं या हार के डर से चुनाव नहीं लड़ेंगे।” भाजपा के गोरखपुर क्षेत्र के वरिष्ठ नेता अजय तिवारी ने कहा ‘‘योगी के मुख्यमंत्री रहने से माफिया, अपराधी और भ्रष्टाचारी कांपते थे। अब उनके उम्मीदवार घोषित होने से विपक्षी दलों के होश उड़ गये हैं क्योंकि अभी तक उनमें से एक भी नेता तय नहीं कर पाया कि वह कहां से चुनाव लड़ेगा।
मुख्यमंत्री पद के लिए उम्मीदवार घोषित किया
कांग्रेस के फ्रंटल संगठन इंडियन ओवरसीज कांग्रेस की उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष कैप्टन बंशीधर मिश्र ने सोमवार को ‘पीटीआई-भाषा’ से बातचीत में कहा ‘‘गोरखपुर से चार बार के विधायक डाक्टर राधा मोहन दास अग्रवाल का टिकट काटकर भाजपा ने योगी को टिकट दिया है। यह संकेत अच्छा नहीं है । यह अंतर्कलह का नतीजा है।’’ गोरखपुर के मूल निवासी कैप्टन मिश्र ने कहा ”योगी के खिलाफ कांग्रेस मजबूत उम्मीदवार उतारेगी। जिस तरह गोरखपुर के मानीराम में मुख्यमंत्री रहते त्रिभुवन नारायण सिंह को कांग्रेस के पंडित राम कृष्ण द्विवेदी ने पराजित किया था, उसी तरह इस बार योगी को कांग्रेस उम्मीदवार पराजित करेगा।” उन्होंने यह भी कहा कि भले ही डॉक्टर अग्रवाल भाजपा के विधायक थे, लेकिन उनका कार्यकाल सराहनीय रहा है और लोकप्रिय विधायक की उपेक्षा का जनता जरूर हिसाब लेगी। इस बारे में पूछने पर गोरखपुर शहर से 2002 से लगातार चुनाव जीतने वाले डॉक्टर राधा मोहन दास अग्रवाल ने ”पीटीआई-भाषा” से कहा ” मैं पार्टी का समर्पित कार्यकर्ता हूं और पार्टी के निर्णय का स्वागत करता हूं।” उल्लेखनीय है कि त्रिभुवन नारायण सिंह उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे जब कांग्रेस दो टुकड़ों में बंटी थीं और प्रदेश में चौधरी चरण सिंह की सरकार से कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया था। कांग्रेस के एक गुट ने त्रिभुवन नारायण सिंह को मुख्यमंत्री पद के लिए उम्मीदवार घोषित किया और 18 अक्टूबर 1970 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
मानीराम विधानसभा सीट से चुनाव हार गए थे
इसके बाद सिंह ने गोरखपुर के मानीराम विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा। इस सीट से योगी आदित्यनाथ के गुरु महंत अवैद्यनाथ हिंदू महासभा से विधायक चुने गये थे और फिर वह सांसद तथा अपने गुरु महंत दिग्विजय नाथ के ब्रह्मलीन होने के बाद उनकी गोरखपुर संसदीय सीट पर हुए उप चुनाव में जीत कर सांसद बने थे। महंत अवैद्यनाथ ने विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा दिया और कांग्रेस ऑर्गनाइजेशन (संगठन) के उम्मीदवार त्रिभुवन नारायण सिंह को अपना समर्थन किया था। तब चुनाव में कांग्रेस (इंदिरा) के उम्मीदवार रामकृष्ण द्विवेदी ने सिंह को पराजित कर दिया था। हार के बाद तीन अप्रैल 1971 को त्रिभुवन नारायण सिंह ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।गोरखपुर के पनियरा ( अब महराजगंज जिले में) विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीतने वाले वीर बहादुर सिंह भी 24 सितंबर 1985 से 24 जून 1988 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे लेकिन मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें चुनाव लड़ने का अवसर नहीं मिला। पिछले विधानसभा चुनाव में यहां कांग्रेस उम्मीदवार राणा राहुल सिंह दूसरे नंबर पर थे लेकिन डॉक्टर अग्रवाल और उनके मतों के बीच भारी अंतर था। जहां डॉक्टर अग्रवाल को एक लाख 22 हजार से ज्यादा मत मिले वहीं राहुल सिंह को करीब 61 हजार मतों पर ही संतोष करना पड़ा। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता आईपी सिंह ने सोमवार को ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा ”हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष (अखिलेश यादव) का दावा शत प्रतिशत सच होगा क्योंकि सपा ने 2018 के लोकसभा चुनाव में गोरखपुर से भाजपा को हराया था। वहां डॉक्टर राधा मोहन दास अग्रवाल का टिकट कटने, अंतर्कलह, झूठ और नफरत की राजनीति के चलते न केवल योगी की विदाई होगी बल्कि पूरे प्रदेश से भाजपा का सफाया होगा।” उन्होंने कहा कि योगी की विदाई की बात इसलिए भी हो रही है क्योंकि वर्ष 1971 में मुख्यमंत्री रहते हुए त्रिभुवन नारायण सिंह गोरखपुर की मानीराम विधानसभा सीट से चुनाव हार गए थे।