रायपुर: देश के कई क्षेत्रों में विवाह संबंधी अजब-गजब प्रथाएं है। कहीं शादी के लिए लड़की को मेले से भागकर ले जाया जाता है। तो कहीं शादी से पहले दुल्हन को वर का पानी यानी कि दुल्हे का नहाया हुआ पानी भेजा जाता है। इसी कड़ी में आज हम आपको एक ऐसे ही विचित्र प्रथा के बारे में बताएंगे जिसमें दुल्हन अपने दुल्हे की मांग भरती हैं।
इस नियम का करना होता है पालन
ये प्रथा देश के मध्य भाग में स्थित छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल इलाके में प्रचलित है। राज्य के जशपुर जिले में दुल्हनें अपने दूल्हे की मांग भरती हैं। इस प्रथा को निभाते समय कुछ नियम कायदों को पूरा करना होता है। स्थानीय लोगों की माने तो यहां विवाह के मंडप में दुल्हन का भाई अपनी बहन की अंगुली पकड़ता है और दुल्हन अपने भाई के सहारे बिना देखे पीछे हाथ करके दूल्हे की मांग भग देती है।
दोनों पक्ष साथ में खरीदते हैं सिंदुर
आम विवाह की तरह यहां भी शादी के लिए मंडप सजाया जाता है और दूल्हा-दुल्हन सज धज कर विवाह के मंडप में बैठते हैं। ठीक इसी तरह से बारातियों और घरातियों की भीड़ भी जुटती हैं। लेकिन, सात जन्मों के सूत्र में बंधन से पहले यहां एक ऐसी प्रथा है जो इस जनजाति की शादी को दूसरी शादी से सबसे अलग बनाती है। यहां शादी कराने वाले पुरोहितों का कहना है कि शादी से पहले वर-वधू पक्ष साथ में बाजार जाते हैं और एक साथ सिंदूर खरीदते हैं। शादी के दिन दूल्हा-दुल्हन उसी सिंदुर से एक-दूसरे की मांग भरते है।
स्थानीय लोग क्या कहते हैं?
स्थानीय लोग मानते हैं कि इस तरह के सिंदूर दान से वैवाहिक रिश्तों में बराबरी का अहसास होता है। शादी के दिन दूल्हे को दूल्हन के घर के पास किसी बगीचे में रखा जाता है उसके बाद दुल्हन के रिश्तेदार दूल्हे को कंधे पर बैठाकर विवाह के मंडप में ले जाते हैं। इसके बाद दुल्हन का भाई अपनी बहन की उंगली पकड़कर दूल्हे की मांग में सिंदूर भरवाता है। अगर दुल्हन का कोई भाई नहीं है तो इस स्थिति में दुल्हन की बहन भी इस रस्म को पूरा कराती है। दोनों दुल्हा-दुल्हन एक-दूसरे को तीन-तीन भार मांग में सिंदूर भरते हैं।
सिंदूर दान की ये अनूठी रस्म चादर के घेरे में निभाई जाती है। जिसे हर कोई नहीं देख पाता है। रस्म निभाते समय केवल दूल्हा-दुल्हन, उनके परिवार, पुरोहित और गांव के बडे़ बुजुर्ग ही मौजूद रहते हैं।