नई दिल्ली। भारत के लिए साल 2021 कुछ अच्छा नहीं रहा। क्योंकि पहले GDP में गिरावट और अब साल के अंत तक भारतीय रूपया एशिया का सबसे कमजोर करंसी बन गया है। दरअसल, कोरोना के चलते विदेशी फंड देश के शेयरों से पैसा निकाल रहे हैं, जिसका बुरा असर साफतौर पर भारतीय मुद्रा पर पड़ा है।
विदेशियों ने 4 अरब डॉलर निकाल लिए
अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में भारतीय करेंसी में 2.2 फीसदी की गिरावाट दर्ज की गई है। जानकार बता रहे हैं कि वैश्विक फंडों ने देश के शेयर बाजार से कुल 4 अरब डॉलर निकाल लिए। जो आसपास के क्षेत्रीय बाजारों में सबसे अधिक राशि है। इसका असर ये हुआ कि एशिया के सबसे कमजोर करंसी में भारतीय रूपया शामिल हो गया।
कोरोना के कारण मार्केट में दहशत का महौल
दरअसल, कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रॉम के आने और भारत में कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान हुए नुकसान को देखते हुए वैश्विक बाजार में अफरा तफरी का महौल है। विदेशी निवेशक भारतीय शेयरों में से काफी बड़ी संख्या में पैसे निकाल रहे हैं। उन्हें डर है कि नए वैरिएंट के आने से कहीं उन्हें ज्यादा नुकसान न उठाना पड़े।
इस वर्ष रूपये में 4 प्रतिशत की गिरावट
गोल्डमैन सैक्स ग्रुप इंक और नोमुरा होल्डिंग्स इंक ने भारतीय बाजार के लिए हाल ही में अपने आउटलुक को कम कर दिया है। इसके लिए उन्होंने उंचे मूल्यांकरन का हवाला भी दिया। रिकॉर्ड हाई व्यापार घाटा और फेडरल रिजर्व के साथ केंद्रीय बैंक की अलग नीति ने भी रूपये की कैरी अपील को प्रभावित किया। ब्लूमबर्ग के ट्रेडर्स और एनालिस्टों के सर्वे के मुताबिक, रूपया 76.50 पर पहुंच सकता है। यानी इस रूपये में 4 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है।
इस वर्ष रूपया कमजोर हो गया, इस बात को सुनकर आपके मन में भी ये सवाल आया होगा कि आखिर इससे देश को क्या नुकसान होगा, तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कि रूपये के कमजोर होने या मजबूत होने से देश को क्या फायदा या क्या नुकसान होगा।
इस कारण से रूपया कमजोर या मजबूत होता है
सबसे पहले जानते हैं रूपया कमजोर या मजबूत क्यों होता है? बता दें कि रूपये की कीमत पूरी तरह इसकी मांग एवं आपूर्ति पर निर्भर करती है। इस पर आयात और निर्यात का भी असर पड़ता है। हर देश के पास दूसरे देशों की मुद्रा का भंडार होता है, जिससे वे लेनदेने करते हैं। इसे विदेशी मुद्रा भंडार कहते हैं। रिजर्व बैंक समय-समय पर इसके आंकड़े जारी करता है। विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा पर असर पड़ता है। साल 2021 में इसी विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आई है। यानी निवेशकों ने यहां से अपने पैसे निकाल लिए हैं।
ऐसे पता चलता है, रूपया कमजोर है या मजबूत
मालूम हो कि अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी का रूतबा हासिल है। इसका मतलब है कि निर्यात की जाने वाली ज्यादातर चीजों का मूल्य डॉलर में चुकाया जाता है। यही वजह है कि डॉलर के मुकाबले रूपये की कीमत से पता चलता है कि भारतीय मुद्रा मजबूत है या कमजोर। अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी इसलिए भी माना जाता है, क्योंकि दुनिया के अधिकतर देश अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में इसी का प्रयोग करते हैं। दुनिया के ज्यादातर देशों में आसानी से इसे स्वीकार्य किया जाता है।
भारत के ज्यादातर बिजनेस डॉलर में ही होते हैं
अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में भारत के ज्यादातर बिजनेस डॉलर में ही होते हैं। यानी अगर देश को अपनी जरूरत का कच्चा तेल (क्रूड ऑयल), खाद्य पदार्थ, इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम आदि विदेश से मंगवाना है तो उसे डॉलर में इसे खरीदना होता है। ऐसे में अगर विदेशी मुद्रा भंडार कम है तो रूपये के मुकाबले डॉलर और कही ज्यादा मजबूत हो जाता है। इसका असर ये होता है कि हमें सामान खरीदने के लिए और अधिक पैसे खर्च करने पड़ते हैं। अधिक पैसे खर्च करने का मतलब है भारत में सामान का दाम बढ़ जाना। जिसका सीधा असर आम नागरिक की जेब पर पड़ता है।
डॉलर के भाव में 1 रूपये की तेजी से इतना पड़ता है भार
बता दें कि भारत अपनी जरूरत का करीब 80% पेट्रोलियम उत्पाद आयात करता है। ऐसे में रूपये में गिरावट से पेट्रोलियम उत्पादों का आयात महंगा हो जाता है और इस वजह से तेल कंपनियां पेट्रोल-डीजल के भाव बढ़ा देती हैं। एक अनुमान के मुताबिक डॉलर के भाव में एक रूपये की वृद्धि से तेल कंपनयों पर 8 हजार करोड़ रूपये का बोझ पड़ता है।