भोपाल। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और मध्यप्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे मोतीलाल वोरा (Motilal Vora) का आज जन्मदिवस है। 20 दिसंबर 1928 को वोरा का जन्म राजस्थान के नागौर में हुआ था। हालांकि पिछले साल 21 दिसंबर यानी जन्मदिवस के एक दिन बाद ही लंबी बीमारी के कारण उनका निधन हो गया। ऐसे में आज उन्हें याद करते हुए हम आपको उनकी कहानी बताएंगे कि कैसे वोरा राजस्थान से निकलकर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, वो भी एक नहीं दो बार।
गांधी परिवार के करीबी थे
वोरा को गांधी परिवार के सबसे करीबी लोगों में गिना जाता था। हालांकि उनके मुख्यमंत्री बनने का किस्सा काफी दिलचस्प है। वोरा का जन्म जरूर राजस्थान में हआ था। लेकिन उन्होंने अपनी सियासत की शुरूआत मध्यप्रदेश से की थी। अब सवाल उठता है कि वे मध्य प्रदेश कैसे आए। तो जनाब वोरा राजनेता बनने से पहले एक पत्रकार थे और पत्रकारिता करने के लिए वे मध्य प्रदेश आए थे।
पत्रकारिता छोड़ सियासत में आए
हालांकि पत्रकारिता में वे ज्यादा दिन तक नहीं रहे और कुछ समय बाद ही वे सियासत में आ गए। अपनी सियासत की शुरूआत उन्होंने प्रजा समाजवादी पार्टी से की। पहली बार उन्होंने वर्ष 1968 में दुर्ग जिले से पार्षदी का चुनाव लड़ा और जीत गए। हालांकि उनके सियासी पारी की असली शुरूआत साल 1972 में हुई। तब मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव होने थे और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता द्वारिका प्रसाद मिश्रा दुर्ग में कांग्रेस के लिए एक अच्छा प्रत्याशी ढूंढ रहे थे।
ऐसे आए कांग्रेस में
तभी द्वारिका प्रसाद मिश्रा को किसी ने सलाह दी कि एक व्यक्ति है जो इस चुनाव को जीत सकता है, लेकिन दिक्कत ये है कि वो किसी और पार्टी का नेता है। बिना देर किए द्वारा प्रसाद ने कहा कि तत्काल उन्हें कांग्रेस की सदस्यता दिलवाओ और यही से मोतीलाल वोरा का सियासी सफर शुरू हो गया। वोरा कांग्रेस में शामिल हुए और दुर्ग से चुनाव जीतकर पहली बार विधानसभा पहुंचे। हालांकि कांग्रेस का इस चुनाव में एक प्रकार से सुपड़ा साफ हो गया था, वहीं भारतीय जनसंघ 220 सीटों के साथ सत्ता में आई थी।
विपरीत परिस्थिति में भी जीते वोरा
वोरा सरकार में तो नहीं बैठ पाए, लेकिन उन्हें राज्य परिवहन निगम का उपाध्यक्ष जरूर नियुक्त किया गया। कुछ समय बाद ही घाटे में चल रहे राज्य परिवहन निगम को वे फायदे में ले आए। इसके बाद उनके इस काम की जमकर सराहना हुई। 1977 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर से कांग्रेस हार गई और जनता पार्टी की सरकार बनी। लेकिन इस बार भी मोतीलाल वोरा जीतने में कामयाब हो गए। इस चुनाव में कांग्रेस के कई दिग्गज हार गए थे। हालांकि जनता पार्टी की सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं चली और 1980 में प्रदेश में एक बार फिर से विधानसभा चुनाव हुए।
वोरा के कारण अर्जुन सिंह की तारीफ
इस बार कांग्रेस की सरकार बनी और वरिष्ठ नेता अर्जुन सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया। 1981 में वोरा को पहली बार उच्च शिक्षा विभाग का राज्यमंत्री बनाया गया। वोरा ने शिक्षा सुधार को लेकर कई फैसले लिए। वोरा के इस काम से अर्जुन सिंह सरकार की जमकर तारीफें हुई। इसका फल वोरा को भी मिला अर्जुन सिंह ने उन्हें राज्यमंत्री से सीधे कैबिनेट मंत्री के रूप में शामिल कर लिया।
1985 में आया टर्निंग पॉइंट
अगले चुनाव यानी 1985 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस सत्ता में आई। मोतीलाल वोरा के जीवन में इसी साल टर्निंग पॉइंट आया। दरअसल, कांग्रेस ने इस चुनाव को मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के नेतृत्व में लड़ा था, जाहिर सी बात है सिंह को दोबारा मुख्यमंत्री चुना गया। सीएम पद की शपथ लेने के बाद अर्जुन सिंह राजीव गांधी के पास मंत्रिमंडल की सूची लेकर गए। लेकिन वहां राजीव गांधी ने उनसे साफ शब्दों में कहा कि आपको पंजाब जाना होगा और दो ऐसे लोगों का नाम बताना होगा जो मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं।
वोरा मंत्री बनना चाहते थे
न चाहते हुए भी अर्जुन सिंह को ये फैसला मानना पड़ा था। अर्जुन सिंह ने दिल्ली से ही अपने बेटे अजय सिंह को फोन मिलाया और कहा कि मोतीलाला वोरा को लेकर दिल्ली आओ। वोरा अजय सिंह के साथ हवाई जहाज में बैठे तब तक दोनों को नहीं पाता था कि वहां क्या होने वाला है। प्लेन में मोतीलाल वोरा ने अजय सिंह से सिफारिश करते हुए कहा कि मुझे मंत्री पद चाहिए आप मेरी मदद करो।
ऐसे मिली मुख्यमंत्री की कुर्सी
लेकिन, वे जैसे ही दिल्ली पहुंचे और राजीव गांधी ने उन्हें आपने पास बुलाकर कहा कि मोतीलाल जी आप मुख्यमंत्री पद की कुर्सी संभाल रहे है, तो उन्हें भी एक सेकेंड के लिए विश्वास नहीं हुआ कि ये क्या हो गया। कुछ देर पहले तक मैं मंत्री पद के लिए सिफारिश कर रहा था और अब सीधे मुख्यमंत्री। बहरहाल, वोरा सीएम बनवे और 1988 तक उन्होंने ये पद संभाला। 1989 में दोबारा चुनाव हुए और एक बार फिर से वे सीएम बने। लेकिन इस बार उन्होंने 11 महीने बाद ही सीएम पद की कुर्सी छोड़ दी।