Black Box: यह शब्द वायुसेना के हेलीकॉप्टर हादसे के बाद सबसे ज्यादा चर्चा में है। हादसे के बाद से ही Black Box की तलाश की जा रही थी जिसे आज सुबह ढूंढ लिया गया है। बतादें कि जब भी कोई विमान हादसा (Plane Crash) होता है तो सबसे पहले जांच एजेंसियां ब्लैक बॉक्स को ही ढूंढ़ने की कोशिश करती है। ऐसे में आपके मन में यह सवाल जरूर उठ रहा होगा कि इस बॉक्स की खासियत क्या है और इसका इस्तेमाल क्यों किया जाता है? चलिए आज हम आपकों ब्लैक बॉक्स के बारे में विस्तार से बताते हैं।
Black Box की खासियत
कहा जाता है कि ब्लैक बॉक्स दुर्घटना के हर राज को खोल देता है। यही कारण है कि इसे प्रत्येक हवाई जहाज में लगाया जाता है। इस बॉक्स को लोग दो नामों से जानते हैं। पहला ब्लैक बॉक्स और दूसरा फ्लाइट डाटा रिकॉर्डर (Flight Data Recorder) उड़ान के दौरान विमान से जुड़ी सभी गतिविधियों की जानकारी इसमें कैद होती है। जैसे- विमान की दिशा, उंचाई, ईंधन, गति, हलचल, केबिन का तापमान इत्यादि सहित कुल 88 प्रकार के आंकड़े इसमें कैद होते हैं। एक ब्लैक बॉक्स 25 घंटों से अधिक की रिकार्डेड जनकारी एकत्रित रखता है।
टाइटेनियम से इसे तैयार किया जाता है
चाहे आप किसी भी प्लेन में क्यों न बैठ रहे हो। ब्लैक बॉक्स हर प्लेन का सबसे जरूरी हिस्सा होता है। विमान में इस बॉक्स को आम तौर पर पिछले हिस्से में लगाया जाता है। इसके अलावा सुरक्षा की दृष्टि से इसे काफी मजबूत मानी जाने वाली धातु टाइटेनियम से बनाया जाता है। इसे जिस डिब्बे में बंद किया जाता है उसे भी टाइटेनियम से ही बनाया जाता है। हादसा कितना भी भयावह क्यों न हो इसके नष्ट होने की संभावना बहुत कम रहती है। चाहे ये काफी उंचाई से जमीन पर गिरे या फिर समुद्री पानी में इसे इस तरह से तैयार किया जाता है कि नुकसान कम से कम हो।
ब्लैक बॉक्स का इतिहास
ब्लैक बॉक्स के इतिहास की बात करें तो इसका इतिहास 50 साल से भी ज्यादा पुराना है। दरअसल, 50 के दशक में कई विमान हादसे हुए। इन हादसों की संख्या इतनी बढ़ गई कि जानकार परेशान हो गए। कई मामलों में उन्हें हादसे की वजह का पता नहीं चल पाता था। ऐसे में उन्हें एक ऐसे डिवाइस की जरूरत महसूस हुई जो विमान हादसे के कारणों की ठीक से जानकारी दे सके ताकि भविष्य में होने वाले हादसों से बचा जा सके।
क्यों कहते हैं ब्लैक बॉक्स (why it is called black box)
विशेषज्ञों ने इसी कड़ी में ब्लैक बॉक्स का निर्माण किया। हालांकि लाल रंग की वजह से इसे शुरूआत में ‘रेड एग’ (Red Egg) के नाम से जाना जाता था। बाहर से देखने में ये लाल रंग का लगता है और इसके भीतरी दीवार को काला रखा जाता है। शायद इसी कारण से इसे बाद में ब्लैक बॉक्स के नाम से भी जाना गया।
कैसे करता है काम?
ब्लैक बॉक्स में दो अलग-अलग तरह के बॉक्स होते हैं।
1) फ्लाइट डाटा रिकॉर्डर
2) कॉकपिट वोइस रिकॉर्डर
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प्लाइट डाटा रिकॉर्डर क्या है?
जैसा की मैंने आपको पहले भी बताया कि ब्लैक बॉक्स को “प्लाइट डाटा रिकॉर्डर” के नाम से भी जानते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि ब्लैक बॉक्स का सबसे प्रमुख हिस्सा यही होता है। इसमें ही विमान की दिशा, उंचाई, ईंधन, गति , हलचल, केबिन का तापमान इत्यादि सहित 88 प्रकार के आंकड़े 25 घंटों से अधिक समय के लिए एकत्रित होते हैं। यह बॉक्स 11000°C के तापमान को करीब 1 घंटे तक सहन कर सकता है। जबकि 260°C के तापमान को 10 घंटे तक यह सहन करने की क्षमता रखता है। इन दोनों बॉक्स को लाल या गुलाबी रंग में बनाया जाता है, ताकि इसे खोजने में आसानी हो सके।
कॉकपिट वोइस रिकॉर्डर
कॉकपिट वोइस रिकॉर्डर में अंतिम 2 घंटों के दौरान विमान की अवाज को रिकॉर्ड किया जाता है। इसमें इंजन की आवाज, आपातकालीन अलार्म की आवाज, केबिन की आवाज और कॉकपिट की आवाज को रिकॉर्ड किया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि संबंधित अफसरों को यह पता लग सके कि आखिर हादसे के पहले या हादसे के समय विमान का माहौल क्या था।
बिना बिजली 30 दिनों तक काम करता है ब्लैक बॉक्स
इस बॉक्स को इस तरह से बनाया जाता है कि ये बिना बिजली के भी 30 दिन तक काम करता रहे। हादसे के बाद बॉक्स जब किसी स्थान पर गिरता है तो उसमें से प्रत्येक सेकेण्ड एक बीप की आवाज 30 दिनों तक लगातार निकलते रहता है। इस आवाज को खोजी दल के लोग 2-3 किमी दूर से ही पहचान सकते है। अगर ब्लैक बॉक्स समुंद्र में गिरा या कोई खाई में गिरा है तो यह 14000 फीट की गहराई से भी संकेत भेजते रहता है।
इन्होंने किया था ब्लैक बॉक्स का आविष्कार
साल 1954 में प्लेन फ्रक्वेंसी बढ़ने के कारण होने वाले हादसों से निपटने के लिए इस बॉक्स का आविष्कार एरोनॉटिकल रिसर्चर डेविड वॉरेन (David Warren) ने किया था। खोज के तुरंत बाद से ही हर प्लेन में ब्लैक बॉक्स रखने की शुरुआत हो गई थी।