नई दिल्ली। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने शनिवार को लोगों से न केवल अपने अंग दान करने का संकल्प लेने का आह्वान किया, बल्कि देश में प्रतिरोपण के लिए उपलब्ध अंगों के अभाव के बारे में प्रचार करने और दूसरों को आगे आने के लिए प्रेरित करने को भी कहा। उन्होंने कहा, “जीते जी रक्तदान, मरने के बाद अंगदान। हमारे जीवन का यही आदर्श वाक्य होना चाहिए।”
यहां 12वें भारतीय अंगदान दिवस को संबोधित करते हुए मंत्री ने अधिक समन्वय का आह्वान किया और इस बात का विशेष उल्लेख किया कि अंगदान की हिचकिचाहट को दूर करने में पूरे समाज को सक्रिय भूमिका निभाने की जरूरत है। स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया, “प्रतिरोपण प्राप्तकर्ताओं को मृत दाताओं द्वारा दिए गए जीवन के उपहार का जश्न मनाने के लिए आयोजित इस कार्यक्रम का उद्घाटन अंग दान को बढ़ावा देने के लिए किया गया था, जब देश में अंग प्रतिस्थापन की मांग अंग दान से कहीं अधिक थी।”
मांडविया ने कहा, “हमारी संस्कृति ‘शुभ’ और ‘लाभ’ पर जोर देती है जहां व्यक्तिगत कुशलता समुदाय के भले में निहित होती है। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा, “12वें भारतीय अंगदान दिवस में भाग लेना मेरे लिए सम्मान की बात है, यह दिन अंगदान के नेक कार्य के लिए मनाया जाता है। वर्ष 2010 से, मृतक दाताओं और उनके परिवारों द्वारा समाज में किए गए योगदान को याद करने के लिए हर साल भारतीय अंग दान दिवस मनाया जा रहा है।”
उन्होंने कहा कि देश में प्रति वर्ष किए गए अंग प्रतिरोपण की कुल संख्या 2013 में 4,990 से बढ़कर 2019 में 12,746 हो गई है। उन्होंने यह भी बताया कि दान एवं प्रतिरोपण पर वैश्विक निगरानी (जीओडीटी) की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार भारत अब दुनिया में केवल अमेरिका और चीन से पीछे है और तीसरे स्थान पर है। इसी तरह अंगदान की दर 2012-13 की तुलना में करीब चार गुना बढ़ गई है।
मांडविया ने कहा, “हालांकि हम अभी भी प्रतिरोपण की आवश्यकता वाले रोगियों की संख्या और मृत्यु के बाद अंग दान करने के लिए सहमति देने वाले लोगों की संख्या के बीच एक बड़े अंतर का सामना कर रहे हैं। इसके अलावा, कोविड-19 महामारी के कारण अंग दान और प्रतिरोपण गतिविधियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, जिसे हम जल्द ही पीछे छोड़ने की उम्मीद करते हैं।”