नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने कृषि कानूनों की वापसी के बाद किसान संगठनों की एक और बड़ी मांग को मान ली है। केंद्रीय कृषी मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने शनिवार को घोषणा करते हुए कहा कि अब देश में पराली जलाना अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा। बता दें कि किसान संगठनों ने सरकार से मांग की थी कि पराली जलाने को दंडनीय अपराध से मुक्त किया जाए। अब सरकार ने ये मांग भी मान ली है। ऐसे में सवाल उठता है कि इससे पहले पराली जलाने को लेकर देश में क्या नियम थे।
पहले क्या था नियम?
बतादें कि केंद्र सरकार ने प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए पराली जलाने पर 2500 रूपए से लेकर 15000 रूपए तक के जुर्माने की घोषणा की थी। इसके अलावा पराली जलाने पर किसान की फर्द में रेड एंट्री भी दर्ज की जाती है। इससे किसानों को सरकारी सब्सिडी और अन्य सुविधाएं मिलनी बंद हो जाती हैं। मालूम को पहले पराली जलाने को लेकर जो नियम बनाए गए थे उसके अनुसार, पराली जलाने से पहले दो एकड़ तक पराली जलाने पर ढाई हजार रूपए, दो से पांच एकड़ तक पराली जलाने पर पांच हजार रूपया और पांच एकड़ से अधिक पराली जलाने पर 15 हजार रूपए का जुर्माना लगाया जाता था।
जुर्माना नहीं भरने पर होता था FIR
यदि कोई किसान जुर्माना नहीं भरता था, तो उस पर FIR दर्ज की जाती थी। हालांकि, जितनी संख्या में किसान पराली जलाते हैं उसकी तुलना में राज्य सरकार न तो जुर्माना वसूल पाती है और न ही एफआईआर दर्ज करती है। क्योंकि उन्हें वोट बैंक के खिसकने का खतरा रहता है। बतादें कि पंजाब और हरियाणा देश में धान का सर्वाधिक उत्पादन करने वाले प्रदेश हैं, इस हिसाब से यहां पराली भी सबसे ज्यादा होती है। अकेले पंजाब में हर साल लगभग 2 करोड़ टन पराली खेतों में रह जाती है। इनमें से लगभग 1.5 करोड़ टन पराली में आग लगाई जाती है।
राजनीतिक जानकार इस फैसले को कैसे देख रहे हैं
राजनीतिक जानकार सरकार के इस फैसले को पंजाब चुनाव से भी जोड़कर देख रहे हैं। उनकी माने तो सबसे ज्यादा पराली पंजाब में ही जलाए जाते हैं, इस कारण से वहां के किसान, पराली जालने को अपराध की श्रेणी से बाहर करने की मांग कर रहे थे। अब जब केंद्र सरकार ने उनकी मांग मान ली है तो ऐसा माना जा रहा है कि इसके पीछे भी पंजाब चुनाव को ध्यान में रखा गया है।