भोपाल। आज हम आपको स्टोरी ऑफ द डे में एक ऐसे ठग की कहानी बताएंगे जिसका इतिहास काफी खौफनाक है। उसकी क्रूरता की कहानी आज भी लोगों में सिहरन पैदा कर देती है। इस खुंखार ठग का नाम है ‘बहराम’। इसने एक पीले रूमाल से 900 से भी अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। भारतीय इतिहास में इससे बड़ा सीरियल किलर आज तक कोई नहीं हुआ। ठग बहराम पूरी दुनिया में कुख्यात था। इसका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज है।
जबलपुर में हुआ था इसका जन्म
1765 में इसका जन्म मध्य भारत के जबलपुर में हुआ था। यदि आज के हिसाब से कहा जाए तो इस ठग का जन्म मध्य प्रदेश में हुआ था। 75 साल की उम्र में उसे उसकी बेरहमी के कारण फांसी की सजा दी गई थी। हालांकि तब उसे पकड़ना इतना आसान नहीं था। ठग बहराम को गिरफ्तार करने से पहले उसके गुरू अमीर अली को पकड़ा गया था।
उसका 200 लोगों का एक गैंग था
बता दें कि उनके आतंक की कहानी तब इंग्लैंड तक पहुंच चुकी थी, उस समय भारत अंग्रेजों का गुलाम था। ऐसे में गवर्नर-जनरल ने 1809 में आर्मी जवान कैप्टन स्लीमैन को भारत भेजा था। कैप्टन स्लीमैन की जांच में इस बात का खुलासा हुआ कि बहराम ठग का एक गिरोह है जो इस काम को अंजाम देता है। इस गिरोह में करीब 200 सदस्य थे। स्लीमैन ने उन्हें पकड़ने के लिए दिल्ली से जबलपुर तक हाईवे पर पड़ने वाले जंगलों को काट दिया था। इसके साथ ही गुप्तचरों का एक बडा जाल बिछाया था।
अली की गिरफ्तारी से पहले मां की गिरफ्तारी
हालांकि, फिर भी कई सालों तक कैप्टन स्लीमैन को ‘बहराम’ के बारे में कुछ पता नहीं चला। ऐसे में कैप्टन ने उसके गुरू अमीर अली को गिरफ्तार करने के बारे में सोचा, लेकिन अमीर अली भी कम शातिर नहीं था। वो भी पकड़ में नहीं आया। गुस्से से लाल कैप्टन स्लीमन ने आमिर अली की मां और परिवार के अन्य सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया। अपने परिवार को बचाने के लिए 1832 में अमीर अली ने सरेंडर कर दिया। जेल में अली को इतना प्रताड़ित किया गया कि उसने मजबूरन ठग बहराम के बारे में बता दिया। इसके साथ ही ठगों का सरदार बहराम भी 1838 में कैप्टन के हाथ लग गया। ठग बहराम ने गिरफ्तारी के बाद कबूल किया था कि उसने 931 लोगों को मौत के घाट उतारा है। ब्रिटिश सरकार ने उसे गिरफ्तार करने के एक साल बाद ही फांसी पर लटका दिया गया था।
ठग एक विशेष भाषा में बात करते थे
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार ये ठग एक विशेष भाषा में बात करते थे। जिसे कोई समझ नहीं पाता था। ब्रिटिश गुप्तचरों ने भी इस भाषा को समझने की भरपूर कोशिश की लेकिन उन्हें कुछ समझ में नहीं आता था। ठग जिस खास भाषा में बातचीत करते थे, उसे ‘रामोसी’ कहते थे। रामोसी एक सांकेतिक भाषा थी। इसके अलावा ये ठग सामने वाले को गुमराह करने में भी माहिर थे।
गिरोह रहस्यमय तरीके से लोगों को गायब कर देता था
ये ठग व्यापारियों, पर्यटकों, सैनिकों और तीर्थयात्रियों का पूरा का पूरा काफिला रहस्यमय तरीके से गायब कर देते थे। सबसे हैरान करने वाली बात यह थी कि पुलिस को लगातार गायब हो रहे इन लोगों के शव भी नहीं मिलते थे। बताया जाता है कि काफिले में शामिल लोग जब सो जाते थे, तब ठग गीदड़ के रोने की आवाज में हमले का संकेत देते थे। इसके बाद गिरोह के साथ बहराम ठग वहां पहुंच जाता। अपने पीले रुमाल में सिक्का बांधकर तेजी से काफिले के लोगों का गला घोंटता जाता था। इसके बाद लोगों की लाश को कुआं आदि में दफन कर दिया जाता था।