नई दिल्ली। भले ही किसी चीज में करंट न हो लेकिन जब हम उसे छूते हैं, तो कई बार हमें करंट लगता है। क्या आपने कभी सोचा है कि ये कैसे होता है? दरअसल, इसके पीछे एक साइंस है। क्या है ये साइंस आज हम आपको विस्तार से बताएंगे
सभी चीजें एटम से बनी होती है
बतादें कि दुनिया में मौजूद सभी चीजें एटम से बनी होती हैं और एक एटम इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन से बना होता है। इलेक्ट्रॉन में निगेटिव चार्ज, प्रोटॉन में पॉजिटिव चार्ज और न्यूट्रॉन न्यूट्रल होता है। जहां प्रोटॉन एटम के न्यूक्लियस में रहते हैं वहीं इलेक्ट्रॉन न्यक्लियस के चक्कर काटते रहते हैं। कोई भी एटम स्टेबल तब होता है जब उसमें इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन की संख्या बराबर होती है। जब इन दोनों की संख्या में अंतर आता है तब इलेक्ट्रॉन बाउंस करने लगते हैं और एटम में हलचल पैदा हो जाती है।
करंट लगने के पीछे की साइंस
बता दें कि जो चीजें अच्छी सुचालक (Good Conductor) होती हैं वो इलेक्ट्रॉन को आसानी से बाहर जाने नहीं देती हैं। इसीलिए इलेक्ट्रॉन एटम में दौड़ते रहते हैं और उस चीज में करंट भी दौड़ता रहता है। जो चीजें बिजली की खराब सुचालक (Bad Conductor) होती हैं वो इलेक्ट्रॉन को बाहर जाने से रोक नहीं पाती हैं इसीलिए कई बार उसमें इलेक्ट्रॉन जमा हो जाते हैं। पॉजिटिव चार्ज निगेटिव चार्ज को अपनी ओर खींचते हैं इसीलिए कंघा अपनी ओर कागज के टुकड़ों को खींचता है।
जब किसी चीज में इलेक्ट्रॉन की संख्या बढ़ जाती है तब उस चीज में निगेटिव चार्ज भी बढ़ जाता है। जब हम किसी ऐसी चीज को छूते हैं तो हमारे शरीर के पॉजिटिव इलेक्ट्रॉन उस चीज के इलेक्ट्रॉन को अपनी तरफ खींचने लगते हैं। इन इलेक्ट्रॉनों की त्वरित गति के कारण ही हमें करंट लगता है।
कितने वोल्ट का होता है झटका?
आप इस झटके को ऑफिस चेयर पर लगातार बैठकर महसूस कर सकते हैं। आमतौर पर यह झटका तभी महसूस होताह है जब इस चार्ज का वोल्टेज 4000 – 5000 वोल्ट के बीच होता है। जी हां. आपने सही पढ़ा । कुर्सी आपको जो बिजली का झटका मारती है वो 5000 वोल्ट से ऊपर का होता है। कुछ मामलों में ये झटका 25000 वोल्ट तक पहुंच जाता है। 25000 वोल्ट हाई टेंशन की श्रेणी में आता है। इसी वोल्टेज पर भारतीय रेल चलती है।
तो फिर हम बच कैसे जाते हैं?
अब सवाल उठता है कि कोई 25000 वोल्ट का झटका खाकर कैसे जिंदा बच सकता है। तो बंधु इसका जवाब ये है कि कुर्सी के झटके में वोल्टेज तो ज़्यादा होता है (माने चार्ज का प्रेशर बहुत है), लेकिन एम्पीयरेज (एम्पीयर करंट मापने की यूनिट होती है) बहुत ही कम होता है। आसान भाषा में कहें तो बहुत प्रेशर के साथ आपको बहुत थोड़ी सी मात्रा में करंट लगता है। ये वैसा ही है जैसे कोई आपको बड़ी स्पीड से रुई का फाहा मार दे। आप उफ तक नहीं करेंगे। लेकिन अगर इसकी जगह 1 किलो का बाट हुआ तो मुंह टूट जाएगा।
इसे टेकनीकली करंट नहीं कह सकते हैं
वैसे टेकनीकली कुर्सी से लगने वाले झटके को करंट कहना भी नहीं चाहिए। क्योंकि करंट चार्ज के लगातार चलते रहने को कहते हैं। कुर्सी वाले मामले में सब एक झटके में खत्म हो जाता है। इसलिए ये करंट नहीं ‘डिस्चार्ज’ बस है। खैर, कम एम्पीयरेज के कारण आप ज़ोर का झटका खाकर भी बच जाते हैं। वरना इतने वोल्टेज के साथ अगर ज़्यादा एम्पीयर का करंट आपको लग जाए, तो निश्चित तौर पर अस्पताल में भर्ती होना पड़ेगा।जान भी जा सकती है।
झटके से बचने का कोई रास्ता है?
समय-समय पर अपने पैर ज़मीन से छूते रहें। तो चार्ज बिल्ड नहीं होगा। क्योंकि वो थोड़ी-थोड़ी मात्रा में धरती मां में समाता रहेगा और आप झटके से बच जाएंगे।