नई दिल्ली। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है अक्षय तृतीया। यानि जिसका कभी क्षय नहीं होता। जी हां इस साल अक्षय नवमी का त्योहार 12 जनवरी को है। इसे आंवला नवमी भी कहते है। शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आवंला नवमी पड़ती है। शास्त्रों में इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा करने का विशेष विधान है। इस आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर पूजा करने के बाद अन्न ग्रहण किया जाता है। इतना ही नहीं इस दिवस आंवले को प्रसाद के रूप में खाने का भी अपना महत्व है। इस दिन किया गया कार्य शुभ फल देता है। इसे अक्षय नवमी भी कहते है। कहते हैं इस दिन से द्वापर युग की शुरुआत हुई थी।
इस दिन से हुई थी द्वापर युग की शुरुआत
मान्यताओं के अनुसार इस दिन से द्वापर युग का आरंभ हुआ था। द्वापर में भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। वहीं भगवान कृष्ण आंवला नवमी के दिन वृंदावन गोकुल को छोड़कर मथुरा के लिए रवाना हुए थे। इस कारण आंवला नवमी के दिन वृंदावन परिक्रमा की शुरुआत होती है।
ऐसे करें पूजन
अक्षय नवमी के दिन मुख्य रूप से आंवले के पेड़ का पूजन किया जाता है। सबसे पहले पेड़ की पूजा कर जल और कच्चा दूध चढ़ाएं। इसके बाद पेड़ की 7 परिक्रमा करते हुए तने में कच्चा सूत या मौली लपेटें। पूजन करने के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करें।
आंवला नवमी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक सेठ ब्राह्माणों को आदर सतकार देता है। उसके बेटों को ये सब पसंद नहीं था। इसके लिए अपने पिता से झगड़ा भी करते है। ऐसे में घर में होने वाली क्लेश से तंग आकर सेठ ने घर छोड़ दिया। वह दूसरे स्थान में रहने लगा। उसने वहां एक दुकान खोल ली और एक आंवले का पेड़ लगाया। भगवान की कृपा से उसकी दुकान चलने ली। वहीं पुत्रों का व्यापार ठप्प हो गया। तब उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ। वह पिता के पास गए और मांफी मांगी। फिर सेठ के कहने पर उन्होंने आंवला के पेड़ की पूजा शुरू की। इसके प्रभाव से उनके जीवन में सारी तकलीफे दूर हो गईं।