इंदौर। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के अध्यक्ष प्रोफेसर धीरेंद्र पाल सिंह ने मंगलवार को कहा कि कोविड-19 के प्रकोप का दुष्प्रभाव नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन पर भी पड़ा है और देश में अगर हालात सामान्य होते, तो इस नीति को अपेक्षाकृत जल्दी अमली जामा पहनाया जा सकता था। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने 29 जुलाई 2020 को नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति घोषित की थी और तब महामारी का प्रकोप आज के मुकाबले कहीं ज्यादा था। यह पूछे जाने पर कि क्या महामारी के प्रकोप के मद्देनजर नयी शिक्षा नीति पेश किए जाने का समय ठीक था, यूजीसी अध्यक्ष सिंह ने इंदौर में संवाददाताओं से कहा कि हमें इस पहलू को दूसरे तरीके से देखना चाहिए। पिछले साल कोविड-19 की बंदिशों के चलते मिले खाली समय से अकादमिक जगत का बौद्धिक जुड़ाव नयी शिक्षा नीति के विमर्श से लगातार बना रहा। उन्होंने कहा कि इस लिहाज से नयी शिक्षा नीति पेश किए जाने का समय ठीक रहा। लेकिन हमें महामारी का दुष्प्रभाव राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने पर जरूर दिखाई दे रहा है। यदि स्थितियां सामान्य होतीं, तो इस नीति का क्रियान्वयन शायद और जल्दी हो सकता था। सिंह ने हालांकि बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन की रफ्तार बढ़ाने के लिए केंद्र द्वारा राज्य सरकारों तथा कुलपतियों से लगातार बातचीत की जा रही है और अलग-अलग स्तरों पर नये सिरे से नियामकीय ढांचा बनाने की दिशा में भी काम जारी है।उन्होंने बताया कि नयी शिक्षा नीति के तहत शैक्षणिक संस्थानों में इसी अकादमिक सत्र से कुछ गतिविधियां शुरू हो गई हैं। ऐसी व्यवस्थाएं की जा रही हैं कि जुलाई 2022 में शुरू होने वाले अगले अकादमिक सत्र में यह नीति देश भर में अच्छी तरह लागू हो जाए। इससे पहले, सिंह ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के संदर्भ में स्वाधीन भारत में शिक्षा का बदलता स्वरूप विषय पर व्याख्यान दिया। इसका आयोजन इंदौर के देवी अहिल्या विश्वविद्यालय और अंग्रेजी दैनिक फ्री प्रेस ने मिलकर किया था। यूजीसी अध्यक्ष ने व्याख्यान में कहा कि नयी शिक्षा नीति विद्यार्थियों को न केवल भारतीय संस्कृति की जड़ों से जोड़ेगी, बल्कि उन्हें श्रेष्ठ वैश्विक नागरिक बनने के लिए भी प्रेरित करेगी। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारत के पुरातन सांस्कृतिक मूल्यों और आधुनिक जगत के ज्ञान-विज्ञान का अनूठा संगम है।