नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी के मार्गदर्शक और वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी का आज जन्मदिन है। 8 नवंबर, 1927 को उनका जन्म कराची में हुआ था। उनके पिता का नाम केडी आडवाणी और मां का नाम ज्ञानी आडवाणी था। विभाजन के बाद उनके पिता भारत आ गए थे। लालकृष्ण आडवाणी की शुरूआती पढ़ाई लाहौर में हुई, इसके बाद भारत आकर उन्होंने मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से स्नातक किया। आज उन्हें भारतीय राजनीति में भीष्म पितामह कहा जाता है।
BJP को फर्श से उठाकर अर्श तक ले गए
भारतीय जनता पार्टी को राष्ट्रीय स्तर तक लाने का श्रेय भी उनके नाम जाता है। हालांकि पार्टी ने अब उन्हें मार्गदर्शक मंडल की श्रेणी में डाल दिया है और उन्होंने एक तरह से राजनीति से संन्यास ले लिया है। लेकिन एक समय ऐसा भी था जब पार्टी में कोई उनकी बात नहीं कटता था। ऐसे में सवाल उठता है कि फिर ऐसा क्या हुआ कि आडवाणी हाशिए पर आ गए। इसकी शुरुआत साल 2014 से होती है, देश में लोकसभा चुनाव की तैयारियां चल रही थीं। आडवाणी भोपाल से चुनाव लड़ना चाहते थे, हालंकि इस बार उनकी मनमर्जी नहीं चल पाई और उन्हें भोपाल छोड़कर गांधीनगर सीट से ही चुनाव लड़ना पड़ा।
कार्यकर्ता इसके लिए तैयार थे
दरअसल, उस वक्त माना जा रहा था कि अगर लालकृष्ण आडवाणी भोपाल से चुनाव लड़ते हैं तो उन्हें ज्यादा मेहनत नहीं करना पड़ेगा और वे बिना चुनाव क्षेत्र में गए भी चुनाव जीत जाएंगे। मध्य प्रदेश के कार्यकर्ता तो इसके लिए तैयार भी बैठे थे। क्योंकि उनके नाम की घोषणा के बिना ही आडवाणी के स्वागत में होर्डिंग भोपाल की सड़कों पर दिखने लगे थे। हालांकि, बाद में जब यह बताया गया कि पार्टी ने उन्हें गांधीनगर से ही चुनाव लड़ने के लिए कहा है, तो होर्डिंग हटा दिए गए। यह पहला मौका था जब पार्टी ने उनकी नहीं, बल्कि पार्टी की बात उन्हें माननी पड़ी थी।
भोपाल को भाजपा का गढ़ माना जाता है
बतादें कि मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल को भाजपा का गढ़ माना जाता है। यहां साल 1984 की इंदिरा लहर के बाद से कांग्रेस तमाम कोशिशों के बावजूद यहां से अपने किसी सांसद को दिल्ली नहीं पहुंचा पाई है। पिछले लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी ने प्रज्ञा सिंह ठाकुर को अपना उम्मीदवार बनाया था और प्रज्ञा ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह को हराकर जीत का सिलसिला कायम रखा है। भोपाल लोकसभा सीट पर कायस्थ, ब्राम्हण और मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं।
इस कारण से यहां भाजपा लगातार जीतती है
ऐसा माना जाता है कि इस सीट पर जहां मुस्लिम कांग्रेस का समर्थन करते हैं, वहीं कायस्थ और ब्राह्मण भाजपा का समर्थन करते हैं। इसी वजह से इस सीट पर बीजेपी का पलड़ा भारी है और यहां लगातार पार्टी जीतती है। भाजपा यहां से चाहे किसी को भी खड़ा कर दे, सभी नेताओं को सफलता मिली है।
आडवाणी नाराज हो गए थे
बीबीसी में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2013 में पार्टी द्वारा प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी का नाम तय किए जाने से लालकृष्ण आडवाणी नाराज हो गए थे। उन्होंने 2014 के चुनाव में मोदी के आने का विरोध किया था। जानकार बताते हैं कि उनकी इच्छा थी कि वो एक बार प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार बनें। लेकिन पार्टी के कार्यकर्ताओं का मोदी के पक्ष में इतना दबाव था कि आडवाणी साइडलाइन हो गए। इसी के बाद साल 2014 में आडवाणी ने भोपाल से चुनाव लड़ने का फैसला किया था, ताकि वे कार्यकर्ताओं को यह संदेश दे सकें कि उनके मन का अब भी पार्टी में चलता है। लेकिन हुआ कुछ इसके उलट, पार्टी ने उन्हें गांधीनगर से ही चुनाव लड़ाने का फैसला किया और उन्हें लड़ना भी पड़ा।
मोदी ने कभी सार्वजनिक रूप से विरोध नहीं किया
2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने मुरली मनोहर जोशी के साथ लालकृष्ण आडवाणी को भी गाइडेंस बोर्ड में रख दिया और अब वह एक तरह से सक्रिय राजनीति से बिल्कुल अलग हो गए हैं। जानकार मानते हैं कि मोदी ने 2019 में 2014 के विरोध का बदला लिया था। हालांकि मोदी ने कभी भी सार्वजनिक रूप से लालकृष्ण आडवाणी का विरोध नहीं किया, वह अक्सर उनके जन्मदिन पर उनके घर जाते हैं और केक काटकर उनका जन्मदिन मनाते हैं।