नई दिल्ली। दिवाली आते ही बच्चों और बड़ों के मन में पटाखों को लेकर एक अलग ही उत्साह देखने को मिलता है। हालांकि, कई राज्यों में इस बार पटाखों पर प्रतिबंध लगाया गया है। पर्यावरण विशेषज्ञों का भी कहना है कि पटाखों के धुंए से नेचर को काफी नुकसान होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं इन पटाखों का इतिहास क्या है। आइए जानते हैं कि आखिर पटाखे शुरू कैसे हुए और इसे सबसे पहले कहां बनाया गया?
चीन में हुई थी इसकी शुरूआत
बतादें कि खुशियां मानाने के लिए दुनियाभर के लोग पटाखों का इस्तेमाल करते हैं। न्यूईयर से लेकर इम्पोर्टेंट इवेंट्स में आतिशबाजी की जाती है। भारत में तो शादी-ब्याह के मौके से लेकर विशेष कार्यक्रम और दिपावली में पटाखे जलाए जाते हैं। वैसे तो पटाखों की शुरूआत को लेकर कई तरह की कहानियां मशहूर है। लेकिन इतिहास में सबसे ज्यादा लोग यही मानते हैं कि इसकी शुरूआत चीन में छठी सदी के दौरान हुई थी।
गलती से हुई थी इसकी शुरूआत
कहा जाता है कि पटाखे का आविष्कार गलती से हुआ था। दरअसल, वहां खाना बना रहे रसोइये ने खाना बनाते समय गलती से सॉल्टपीटर जिसे पोटेशियम नाइट्रेट भी कहते हैं, उसको आग में फेंक दिया। आग में फेंकने से बाद उससे रंगीन लपटें निकलने लगी। इसके बाद रसोइये ने इसे कोयले और सल्फर के साथ आग में डाला इससे वहां काफी तेज धमाका हुआ और इस तरह बारूद का आविष्कार हुआ था। बाद में इस बारूद को पटाखों में भरकर आतिशबाजी की जाने लगी।
बांस में बारूद भरकर बनाया था पटाखा
हालांकि, कुछ लोगों का मानना है कि पटाखे के आविष्कार में सिर्फ रसोइये का हाथ नहीं था। रसोइये ने सिर्फ बारूद इजात किया था। बारूद से पटाखा चीनी सैनिकों ने बनाया था। उन्होंने बारूद को बांस में भरकर पटाखे बनाए थे। कुछ भी हो लेकिन इतिहास यही मानता है कि पटाखों का आविष्कार चीन में हुआ था। वहीं भारत में इसकी शुरूआत 15वीं सदी में हुई थी। कई पेंटिग्स में लोगों को आतिशबाजी करते हुए देखा गया है।
भारत के 80% पटाखों का निर्माण इस स्थान पर होता है
भारतीय इतिहास में पटाखों का इस्तेमाल शादी-ब्याह में किया जाता था। इसके अलावा बारूद का इस्तेमाल युद्ध में भी किया जाता था। पहले इससे किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया जाता था, बल्कि इसकी आवाज से दुश्मनों को भगाया जाता था। भारत में अधिकांश पटाखों का उत्पादन शिवकाशी में होता है। यहां देश के 80% पटाखों का निर्माण होता है।