नई दिल्ली। फिल्म अभिनेता शाहरूख खान अब अपने बेटे को जमानत दिलाने के लिए पानी की तरह पैसा बहा रहे हैं। उन्होंने नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के सामने वकीलों की एक पूरी फौज खड़ी कर दी है। आर्यन खान को जेल से रिहा कराने के लिए पहले संजय दत्त की पैरवी करने वाले वकील सतीश मानशिंदे के अलावा अमत देसाई, आनंदिनी फर्नांडीस और रूस्तम मुल्ला पैरवी कर चुके हैं। वहीं अब आर्यन को रिहा कराने के लिए भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी अपनी पूरी टीम के साथ कोर्ट पुहंचे थे। आइए जानते हैं कौन हैं मुकुल रोहतगी और क्या है इनका इतिहास।
NCB ने जमानत का किया विरोध
मंगलवार को मुंबई क्रूज ड्रग्स केस (Aryan Khan Drugs Case) में शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान को जमानत दिलाने के लिए भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी कोर्ट पहुंचें। बंबई हाईकोर्ट (Bombay High Court) में जस्टिस सांबरे की बेंच में मंगलवार (26 अक्टूबर) को मामले की सुनवाई हुई। आर्यन खान का केस 57वें नंबर पर लिस्ट था। ऐसे में तय समय से पहले ही भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी अपनी टीम के साथ कोर्ट पहुंच गये थे। इस दौरान एनसीबी के वकील ने आर्यन खान की जमानत का विरोध किया। वहीं दूसरी तरफ, मुकुल रोहतगी ने आर्यन को जमानत देने के पक्ष में दलील रखी। एनसीबी के वकील ने कहा कि आरोपित आर्यन खान के पिता शाहरुख खान की मैनेजर पूजा ददलानी केस को प्रभावित करने की कोशिश कर रही हैं. इसलिए आर्यन को जमानत नहीं दी जानी चाहिए।
इन वकीलों ने नहीं दिलाया जमानत
बॉलीवुड में बादशाह खान के नाम से मशहूर एक्टर शाहरुख खान ने अपने बेटे को जेल से बाहर निकालने के लिए पानी की तरह पैसा बहा रहे हैं। उन्होंने देश के सबसे बड़े वकीलों की लाईन लगा दी है। सेशन कोर्ट और एनडीपीएस कोर्ट से जब शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान को जमानत नहीं मिली, तो बॉलीवुड के एक्टर ने संजय दत्त के वकील रहे सतीश मानशिंदे को कोर्ट में खड़ा किया। इतना ही नहीं, शाहरुख खान के बेटे को जमानत दिलाने के लिए आनंदिनी फर्नांडीस, रुस्तम मुल्ला, अमित देसाई जैसे सीनियर वकीलों ने भी पूरी कोशिश की। लेकिन कोई आर्यन खान को जेल से बाहर निकालने में कामयाब न हो सका।
कौन हैं मुकुल रोहतगी?
मुकुल रोहतगी को 19 जून 2014 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अटॉर्नी जनरल नियुक्त किया था। वह 18 जून 2017 तक देश के 14वें अटॉर्नी जनरल रहे। मुकुल रोहतगी सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ और दिग्गज वकील हैं। रोहतगी के पिता अवध बिहारी रोहतगी भी दिल्ली हाई कोर्ट के जज थे। मुकुल रोहतगी ने साल 2002 के गुजरात दंगों में राज्य सरकार का सुप्रीम कोर्ट में बचाव किया था। 2002 के दंगों को फर्जी एनकाउंटर के आरोपों को लेकर उन्होंने राज्य सरकार की अदालत में पैरवी की। इसके अलावा वह ‘बेस्ट बेकरी’ और ‘जाहिरा शेख ममाले’ के लिए भी सुप्रीम कोर्ट में जिरह कर चुके हैं।
हर सुनवाई के लिए 10 लाख रुपये की फीस
मुकुल रोहतगी ने मुंबई के ही गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से कानून की डिग्री ली है। इसके बाद उन्होंने योगेश कुमार सभरवाल के जूनियर के तौर पर अपनी प्रैक्टिस शुरू की। योगेश कुमार सभरवाल देश के 36वें चीफ जस्टिस बने। मुकुल रोहतगी ने जस्टिस योगेश कुमार सभरवाल के साथ हाई कोर्ट में काम करना शुरू किया। साल 1993 में दिल्ली हाई कोर्ट ने उन्हें सीनियर काउंसिल का दर्जा दिया। 1999 में मुकुल रोहतगी एडिशनल सॉलिसिटर जनरल बने। तब केंद्र में अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार थी। मुकुल रोहतगी की फीस को लेकर कोई पुष्ट जानकारी तो नहीं है। लेकिन कई रिपोर्ट्स में यह दावा किया गया है कि वह हर सुनवाई के लिए 10 लाख रुपये की फीस लेते हैं।