नई दिल्ली। जरा सोचिए अगर आपकी Blind Patients आखों की रोशनी खो चुके हो फिर आपको दुनिया देखने को मिले तो कैसा हो। आप सोच रहे होंगे ऐसा कैसे हो सकता है। पर ये सच है। जी हां वैज्ञानिकों ने ये कमाल कर भी दिखाया है। दरअसल वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक इजाद की है। जिसमें एक चिप की सहायता से लोग अपनी खोई हुई आंखों के बिना भी दुनिया को देख पाएंगे।
दरअसल स्पेन के वैज्ञानिकों ने दृष्टिहीनों के लिए जो नई तकनीक इजाद की है उसमें मरीज के दिमाग में एक विशेष प्रकार की चिप (Artificial Retina) जाती है। जिसमें व्यक्ति बिना दृष्टि के भी देख सकता है। होता ये है कि दिमाग में लगाई गई चिप से हमारा मस्तिष्क विजुअल कॉरटेक्स को सक्रिय कर देता है। फिर होता यूं है कि हमारा दिमाग सामने दिखने वाली के तस्वीर बनाने लगता है।
चश्में में लगेगी आर्टिफिशियल रेटिना (Artificial Retina)
स्पेन के वैज्ञानिकों द्वारा इस तकनीक में एक ऐसा चश्मा बनाया गया है जिसमें रेटिना लगाई गई है। यह रेटिना दिमाग में लगी चिप से कनेक्ट की होती है। जैसे ही लाईट या रोशनी रेटिना पर पड़ती है वह रेटिना इलेक्ट्रिकल सिग्नल इम्प्लांट को भेजती है। जिसके बाद यह दिमाग में लगाया गया इम्प्लांट उस रोशनी का एनासिसिस करके दिमाग के विजुअल कॉरटेक्स में रेटिना के सामने दिख रही चीजों की तस्वीर बना कर उस दृष्टिहीन व्यक्ति के सामने रख देता है।
57 वर्षीय महिला पर हुआ परीक्षण, 16 वर्ष बाद देखी दुनिया
वैज्ञानिकों ने यह कारनामा कर दिखाया है। इतना ही नहीं शोधकर्ताओं द्वारा 57 वर्षीय दृष्टिहीन महिला पर इस चश्में और चिप के इंप्लांट का परीक्षण किया गया। जिसमें 16 साल बाद वह महिला इस ब्रेन इंप्लांट के बाद आर्टिफिशियल रेटिना वाले चश्मों को लगाने के बाद उस उसके सामने चलने वाली तस्वीर उसके दिमाग में बनने लगी थीं।
स्टडी में हुआ खुलासा —
द जर्नल ऑफ क्लीनिकल इन्वेस्टिगेशन में एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई जिसके अनुसार वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि इस तकनीक की मदद से हम दिमाग के स्थित उन न्यूरॉन्स को सक्रिय किया जा सकता है जिसमें जिनसे दिमाग आर्टिफिशियल रेटिना के सामने जो चीजें दिखता है उसी चीजों की बाहरी आकृति वह सामने दिखाने लगता है। मतलब उस इमेज का आकार दिमाग में स्पष्ट होने लगता है।
महिला के पहले बंदरों पर भी हो चुका है ट्रायल —
स्पेन की मिगुएल हरनैंडेज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए इस शोध का परीक्षण 57 वर्षीय महिला के पहले दृष्टिहीन बंदरों पर भी ट्रायल किया गया था। जिसमें 1000 इलेक्ट्रोड वर्जन का ट्रायल इन बंदरों पर हुआ था। यह इम्प्लांट दिमाग के ठीक ऊपर एक पतली परत की तरह लगाया जाता है।
4 मिलीमीटर चौड़ा है इंप्लांट
वैज्ञानिकों द्वारा दिमाग में लगाया गया यह इम्प्लांट सिर्फ 4 मिलीमीटर ही चौड़ा है। इतना ही नहीं इसके अंदर लगे माइक्रोइलेक्ट्रोड मात्र 1.5 मिलीमीटर लंबे थे। यह दिमाग में इस तरह से लगाए जाते हैं कि यह विजुअल यानि चित्र कॉरटेक्स में होने वाले इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी को सक्रिय कर सकें उस हिस्से में हो रहे इलेक्ट्रिकल के बहाव को देख कर निगरानी भी कर सकें।
अभी लागत नहीं हैं क्लीयर
वैज्ञानिकों का ऐसा मानना है कि कुछ लोगों को अपने दिमाग में माइक्रोइलेक्ट्रोड (Microelectrode) से लैस इम्प्लांट लगवाने से हिचकिचाहट हो सकती है। पर इससे दृष्टिहीनों को देखने में मदद मिली है तो इसे करवाना चाहिए। इससे कोई नुकसान नहीं होता है।
6 महीने बाद निकाला सुरक्षित
इस आर्टिफिशियल रेटिना (Artificial Retina) और ब्रेन इम्प्लांट के कोई साइडइफेक्ट नहीं है। ये दिमाग के विजुअल कॉरटेक्स वाले हिस्से को सक्रिय करता है। यह सुरक्षित है। इससे दिमाग बाकी के हिस्सों के न्यूरॉन्स पर कोई असर नहीं होता। हालांकि इस इंप्लाइट में और अधिक सुधार करने के लिए 6 महीनें बाद वैज्ञानिकों इस इम्प्लांट को महिला से सिर से निकाल लिया था। ताकि उसे और मॉडिफाय किया जा सके। बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए जरूरी इसका बेहतर होना जरूरी है।