नई दिल्ली। सूचना का अधिकार कानून के तहत विभिन्न सूचना आयोगों ने पिछले वर्ष 95 फीसदी मामलों में सरकारी अधिकारियों पर जुर्माना नहीं लगाया, जबकि वे जुर्माना लगा सकते थे। यह दावा सोमवार को सूचना कानून पर काम करने वाले एक समूह ने किया। आरटीआई कानून की 16वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर यह रिपोर्ट उजागर की गयी। इसमें केंद्रीय सूचना आयोग सहित 20 सूचना आयोगों पर अध्ययन किया गया है।
‘सतर्क नागरिक संगठन’ ने बयान जारी कर बताया कि इसमें मामलों का निपटारा और उनके द्वारा लगाए गए जुर्माने के आंकड़े समाहित हैं। समूह ने एक पूर्ववर्ती सांख्यिकीय विश्लेषण का प्रयोग किया है जिसमें इसने दावा किया कि 59 फीसदी फैसलों में आरटीआई कानून की धारा 20 के तहत सूचीबद्ध एक या अधिक उल्लंघन किए गए। इसमें इस निष्कर्ष पर पहुंचा गया कि आयोगों ने इस दौरान 95 फीसदी मामलों में जुर्माना नहीं लगाया।
समूह ने बयान जारी कर कहा, ‘‘अगर 59 फीसदी मामलों का आकलन किया जाए तो 20 सूचना आयोगों द्वारा निस्तारित 69,254 मामलों में से 40,860 मामलों में जुर्माना लगाया जा सकता था। जुर्माना केवल 4.9 फीसदी मामलों में लगाया गया। इस तरह से सूचना आयोगों ने 95 फीसदी मामलों में जुर्माना नहीं लगाया जहां जुर्माना लगाया जा सकता था।’’
आरटीआई कानून के तहत 30 दिनों के अंदर आवश्यक रूप से सूचना देनी होती है और ऐसा नहीं करने पर जन सूचना अधिकारी पर प्रति दिन 250 रुपये का जुर्माना और अधिकतम 25 हजार रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। कानून के मुताबिक जनसूचना अधिकारी के वेतन से यह जुर्माना वसूला जाता है।