नई दिल्ली। बॉलीवुड अभिनेता शाहरख खान के बेट आर्यन खान समेत 8 आरोपियों को मुंबई की कोर्ट ने 14 दिनों के लिए न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। बतादें कि इन सभी आरोपियों को NCB ने ड्रेग्स सेवन के मामले मुंबई से गोवा जा रहे क्रूज से गिरफ्तार किया था। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने इस मामले में कोर्ट से सभी आरोपियों को पुलिस कस्टडी की मांग की थी, जिसे कोर्ट ने खारीज कर दिया और सभी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया। ऐसे में सवाल उठता है कि पुलिस कस्टडी और न्यायिक हिरासत में क्या अंतर है?
हिरासत क्या है?
पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत को समझने से पहले हम यह समझेंगे कि ‘हिरासत’ क्या है? आसान भाषा में कहें तो हिरासत का मतलब है किसी व्यक्ति को अपनी इच्छा के मुताबिक कहीं आने-जाने या कुछ करने पर प्रतिबंध लगा देना। ऐसी परिस्थिति में सरकारी विभाग जैसे -पुलिस, एनसीबी, सीबीआई के अफसर उस व्यक्ति पर नजर रखते हैं। हालांकि किसी भी व्यक्ति को बिना मतलब हिरासत में नहीं रखा जा सकता है। अगर को ऐसा करता है तो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अुनसार उस व्यक्ति के आजादी पर सीधा हमला है।
अगर कोई व्यक्ति किसी मामले में आरोपी है और कोर्ट ने आदेश दिया है तभी उसे कानूनी तौर पर हिरासत में रखा जा सकता है। इसके बाद ही सक्षम अधिकारी उस व्यक्ति से पूछताछ कर सकते हैं।
गिरफ्तारी क्या है?
कई लोग गिरफ्तारी को ही हिरासत समझ लेते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। गिरफ्तारी का मतलब होता है कि किसी व्यक्ति को बलपूर्वक पुलिस कैद में रखना। हालांकि गिरफ्तारी के बाद व्यक्ति को हिरासत में रखा जा सकता है। पुलिस अगर किसी व्यक्ति को हिरासत में रखती है तो उसे 24 घंटे के अंदर मजिस्ट्रेट के सामने कोर्ट में पेश करना होता है। जब आरोपी को गिरफ्तार करने के बाद मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाता है, तो उस वक्त मजिस्ट्रेट के पास दो विकल्प होते हैं। पहला कि आरोपी को वे पुलिस हिरासत में दे दे या दूसरा कि उसे न्यायिक हिरासत में भेज दें। मजिस्ट्रेट को ये शक्ति आरपीसी की धारा 167(2) में दी गई है।
पुलिस हिरासत में भेजने का ये है मतलब
यदि मजिस्ट्रेट आरोपी को पुलिस हिरासत में भेजता है तो उसे पुलिस थाने में बंद किया जाता है और इस दौरान पुलिस उससे पूछताछ कर सकती है। हिरासत में रखने के दौरान पुलिस आरोपी से कभी भी पूछताछ कर सकती है।
यह है न्यायिक हिरासत
वहीं जब मजिस्ट्रेट आरोपी को न्यायिक हिरासत में भेजता है तो फिर उसे सीधे जेल भेज दिया जाता है। ऐसी स्थिति में अगर पुलिस को पूछताछ करनी होती है तो इसके पहले मजिस्ट्रेट का आदेश लेना जरूरी होता है। न्यायिक हिरासत के दौरान पुलिस हिरासत की प्रकृति को बदल नहीं सकती है।