भोपाल। 2 अप्रैल यानि आज Chaitra Navratri 2022 से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। बदलता मौसम बीमारियों को भी बढ़ावा दे रहा है। अगर आप भी इस बदलते मौसम में मां के आशीर्वाद के साथ इन बीमारियों से छुटकारा पाना चाहते हैं तो आइए हम आपको बताते है ज्योतिषाचार्य की नजरिए से कौन—कौन से औषधिए पौधे हैं जिनमें मां के रूप विराजमान हैं। पंडितों व आयुर्वेद के जानकारों के अनुसार मां दुर्गा के यह नौ रूप 9 औषधियों में भी विराजते हैं। जो समस्त रोगों से बचाकर जगत का कल्याण करते हैं।
मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति से मानी जाती है शुरूआत
नवदुर्गा के नौ औषधि स्वरूपों के बारे में ऐसा कहा जाता है कि सबसे पहले मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति के इन रूपों को दर्शाया गया है। पंडित रामगोविन्द शास्त्री की मानें तो चिकित्सा प्रणाली के इस रहस्य को ब्रह्माजी द्वारा उपदेश में दुर्गाकवच कहा गया है। जिसके अनुसार इन औषधियों को समस्त रोगों को हरने वाली व उनसे रक्षा करने वाले कवच को रूप में माना जाता है। यही कारण है कि इसे दुर्गाकवच कहा जाता है। यदि व्यक्ति इन औषधियों का उपयोग करता है तो वह अकाल मृत्यु से बचकर सौ वर्ष तक आराम का जीवन व्यतीत करता है।
आइए जानते हैं उन 9 औषधियों के बारे में जिन्हें नवदुर्गा कहा गया है।
1. प्रथम देवी शैलपुत्री — हरड़
मां के प्रथम रूप का प्रथम रूप शैलपुत्री है। औषधि हरड़ को हिमावती कहा जाता है। यह भी मां देवी शैलपुत्री का ही एक रूप हैं। इसे आयुर्वेद की प्रधान औषधि भी कहा जाता है।
ये हरड़ भी सात प्रकार की होती है।
हरीतिका (हरी) — इसे भय को हरने वाली देवी के रूप में माना जाता है।
पथया – हित करने वाली
कायस्थ- शरीर को बनाए रखने वाली
अमृता – अमृत जैसी
हेमवती – हिमालय पर उगने वाली
चेतकी – चित्त यानि मन को प्रसन्न रखने वाली
श्रेयसी (यशदाता) शिवा – कल्याणकारी
2. द्वितीय ब्रह्मचारिणी यानि ब्राह्मी
मां का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी है। इन्हें आयु और स्मरण शक्ति को बढ़ाने, रक्त संबंधी विकारों का शमन करने के साथ—साथ वाणी को मधुर रखने वाली हैं। इसी कारण ब्राह्मी को सरस्वती भी कहते हैं।
3. तृतीय चंद्रघंटा यानि चन्दुसूर –
मां का तीसरा रूप है चंद्रघंटा है। इसे चन्दुसूर या चमसूर भी कहा गया है। धनिये के समान दिखने वाला यह पौधा बड़ा गुणकारी होता है। इसकी पत्तियों की सब्जियां भी बनाई जाती हैं। इसका सबसे गुणकारी उपयोग मोटापा दूर करने में होता है। यही वजह है कि इसे चर्महन्ती भी कहा जाता है। हृदय रोग दूर करने व शक्ति को बढ़ाने वाली भी यही हैं। इस बीमारी से ग्रसित रोगियों को चंद्रघंटा को पूजना चाहिए।
4. चतुर्थ कुष्माण्डा यानि पेठा –
मां के चौथे रूप यानि कुष्माण्डा मां के रूप में पेठा मिठाई बनती है। यही कारण है कि इसे को पेठा कहा जाता है। चूंकि ये मिठाई कुम्हड़ा से बनती है अत: इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं। ये वीर्यवर्धक होने के साथ—साथ रक्त विकारों को दूर करने वाला होता है। मानसिक रोगियों के लिए मां kushmanda अमृत हैं। कुम्हड़ा रक्त पित्त एवं गैस के रोगों में लाभकारी होता है। साथ ही हृदय रोगों को भी दूर करता है। इससे ग्रसित लोगों को कुष्माण्डा देवी के पूजन के साथ—साथ पेठा का सेवन करना चाहिए।
5. पंचम स्कंदमाता यानि अलसी –
पांचवें रूप में स्कंदमाता का पूजन किया जाता है। इन्हें पार्वती और उमा भी कहते हैं। इनके औषधिय रूप की बात की जाए तो ये अलसी में विराजमान हैं। रोगों की बात करें तो ये वात, पित्त, कफ में सबसे ज्यादा कारगार है।
6. षष्ठम कात्यायनी यानि मोइया –
मां के छटवे रूप में कात्यायनी मां की पूजा की जाती है। आयुर्वेद में अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका के नाम से भी जाना जाता है। इसके अतिरिक्त इन्हें मोइया अर्थात माचिका भी पुकारा जाता है। इस औषधी को कंठ के रोगों में बहुत कारगार माना जाता है। इसके अलावा कफ, पित्त, अधिक विकार को दूर करती है।
7. सप्तम कालरात्रि यानि नागदौन –
मां के सातवे रूप में मां कालरात्रि को पूजा जाता है। इन्हें महायोगिनी, महायोगीश्वरी भी कहते हैं। औषधी की बात करें तो इन्हें नागदौन औषधि के नाम से भी जानते हैं। जो सभी प्रकार के रोगों को दूर करती है। मानसिक रोगों को भी दूर करती है। इस पौधे को मात्र घर में लगा लेने से ही व्यक्ति अपने घर में लगाने पर घर के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। इनकी आराधना सभी व्यक्तियों द्वारा की जा सकती है।
8. अष्टम महागौरी यानि तुलसी –
आठवें रूप में मां के महागौरी रूप की पूजा की जाती है। इनका औषधि नाम तुलसी है। जिनसे हर कोई परिचित है। सभी के घरों में इनका वास होता है। ये तुलसी सात प्रकार की होती है- सफेद, काली, मरुता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र। ये रक्त शुद्धि के साथ—साथ हदृय रोग को भी समाप्त करती हैं।
9. नवम सिद्धिदात्री यानि शतावरी
मां सिद्धिदात्री को मां नौवे रूप में पूजा जाता है। इनका औषधीय नाम नारायणी और शतावरी भी है। इस औषधी को बल, बुद्धि और वीर्य के लिए उत्तम माना जाता है। इन्हें रक्त विकार के साथ—साथ वात, पित्त नाशक और हृदय के रूप में भी देखा जाता है। जो मनुष्य इनका नियमानुसार सेवन करता है उसे सभी रोगों से मुक्ति मिल जाती है। इन रोगों से पीड़ित व्यक्ति को सिद्धिदात्री देवी की आराधना करनी चाहिए।