Image source-@GretaThunberg
नई दिल्ली। किसान आंदोलन अब 70 दिन से अधिक का हो चला है। इस दौरान आंदोलन से कई नाम जुड़े, कई विवादें पैदा हुई और इन्हीं नामों में से एक नाम है ग्रेटा थनबर्ग का। जो अचानक से इस आंदोलन में ट्रेंड कर रही हैं। ऐसे में जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर ये ग्रेटा थनबर्ग हैं कौन और आंदोलन के बीच इनकी इतनी चर्चा क्यों हो रही है?
पहले भी रही है चर्चा में
बतादें कि ग्रेटा थनबर्ग कोई नया नाम नहीं है जो अचानक से चर्चा में आई हो। इससे पहले इनका नाम तब सुर्खियों में आया था, जब 2018 में ये केवल 15 साल की उम्र में पर्यावरण बचाने के लिए दुनियाभर के नेताओं से भिड़ गई थी। ग्रेटा स्वीडन की रहने वाली है और लोगों को ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए जागरूक करती है। साल 2018 में उसने ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए जागरूकता लाने की मुहिम शुरू की थी। तब वह स्वीडिश संसद के बाहर हर शक्रवार को बैठती थी। मीडिया ने सबसे पहले उसे इसी टाइम पे कवर किया था। जिसके बाद उसकी चर्चा पूरी दुनिया में होने लगी थी। कई देशो में ग्रेटा को देखकर लोगों ने #FridaysForFuture नाम के साथ पर्यावरण बचाने की मुहिम भी शुरू कर दी।
ग्रेटा के इस मुहिम को 140 देशों के लोगों ने किया समर्थन
ग्रेटा को अपने मुहिम में कई लोगों का साथ मिला। स्वीडन के कुछ स्थानीय लोग हर शुक्रवार को पर्यावरण के लिए काम करने लगे। यही नहीं ग्रेटा के इस मुहिम में 24 देशों के करीब 17 हजार छात्रा ने भी हिस्सा लिया। धीरे-धीरे लोगों की संख्या बढ़ती गई और एक समय ऐसा भी आया कि इस मुहिम से 140 देश के 4 लाख से ज्यादा लोग जुड़ गए।
ग्रेटा थनबर्ग का निजी जीवन
ग्रेटा थनबर्ग के अगर निजी जीवन की बात करें तो उसका जन्म 3 जनवरी 2003 को स्वीडन के स्टॉकहोम में हुआ था। उनके पिता का नाम स्वांटे थनबर्ग है और वह पेश से एक्टर हैं। वहीं उनकी मां का नाम मलेना एर्नमन है जो ओपेरा गायिका हैं। ग्लोबल वॉर्मिंग के तरफ ग्रेटा का ध्यान महज 8 साल की उम्र में गया था जब वह क्लाइमेट चेंज को लेकर पढ़ना शुरू किया था। उसने 12 साल की उम्र तक मुहिम के लिए कदम उठाने शुरू कर दिए। सबसे पहले इसकी शरुआत उसने खुद से की। 12 साल की उम्र में ही उसने मीट और फ्लाइट दोनों का इस्तेमाल करना बंद कर दिया। वह सफर के लिए ट्रेन का इस्तेमाल करने लगी और लोगों को भी जागरूक करने लगी।
इस भाषण ने दिलाई दुनिया में पहचान
ग्रेटा थनबर्ग को दुनियाभर के लोग तब जानने लगे, जब उसने सितंबर 2019 में यूनाइटेड नेशन्स में एक भाषण दिया। UN ने ग्रेटा को बतौर पर्यावरणविद भाषण देने के लिए इनवाइट किया गया था। लोग सोच कर चल रहे थे कि ये कम उम्र की लड़की पर्यावरण पर क्या बोलेगी। लेकिन जब उसने बोलना शुरू किया तो लोग दंग रह गए। ग्रेटा ने वहां एक-दो लोगों को बोलते हुए सुन लिया था कि इसे यहां नहीं होना चाहिए था। इस पर उसने गुस्से में कहा, आपकी हिम्मत कैसे हुई ये बोलने की कि मुझे यहां नहीं होना चाहिए था बल्कि अभी मुझे स्कूल में होना चाहिए था। आप लोगों के इस खोखले शब्दों ने मेरा बचपन और मेरे सपने चुरा लिए हैं। हां मुझे होना चाहिए था स्कूल में लेकिन जब बिगड़ते पर्यावरण की चिंता आप नहीं करेंगे तो मुझे तो करना पड़गा। इस भाषण से वो रातों-रात स्टार बन गई। टाइम मैगजीन ने भी ग्रेटा को इस भाषण के लिए पर्सन ऑफ दे ईयर से सम्मानित किया। वह इस सम्मान को पाने वाली सबसे कम उम्र की शख्स हैं।
ग्रटा को इस भाषण के लिए कई सम्मान मिले। उन्हें राइट लिवलीहड अवॉर्ड से भी नवाजा गया। इसके अलावा साल 2019 में उन्हें पहली बार नोबेल पीस प्राइज के लिए भी नॉमिनेट किया गया। हालांकि ये उन्हें नही मिला। अब उन्हें फिर से एक बार साल 2021 में नोबेल पीस प्राइज के लिए नॉमिनेट किया गया है।
फिर से क्यों है चर्चा में
ग्रेटा इन दिनों फिर से सुर्खियों में हैं। कारण है उनका एक ट्वीट जो उन्होंने भारत में चल रहे किसान आंदोलन को लेकर किया है। लोग उनपर आरोप लगा रहे हैं कि वो अपने ट्विट के माध्यम से भारत के खिलाफ दुष्प्रचार कर रही है। मालूम हो कि ग्रेटा ने अपने ट्वीट में कई सीक्रेट दस्तावेज शेयर किए हैं, जिसमें हर दिन की जानकारी देते हुए बताया गया है कि कैसे आंदोलन को चलाना है।