रीवा: पान में सुपारी, पूजा में सुपारी और अब सुपारी के खिलौने। जी हां, पूरे देश में सफेद बाघों के लिए जाना जाने वाला रीवा अपनी एक खास कला के लिए भी जाना जाता है। वैसे तो रीवा की पहचान सफेद शेर के रूप में होती ही है। लेकिन सुपारी के खिलौनों ने रीवा को राष्ट्रीय स्तर पर गौरव भी दिलाया है।
दरअसल, रीवा सुपारी से बनने वाले खिलौनों के लिए भी काफी प्रसिद्द हैं। सुपारी से खिलौना बनाने की कला का विकास रीवा में 1942 के आस पास हुआ था। तब से लेकर आज तक यहां के कलाकार अपने हुनर से सुपारी तरह तरह आकार देकर में हमारे आपके घरों की शोभा बढ़ा रहे हैं।
रीवा के दुर्गेश कुंदेर को सुपारी से खिलौने बनाने में महारथ हासिल है। कुंदेर परिवार के कुछ लोगों के लिए ये चाहे भले ही जीवन यापन का एक जरिया हो, लेकिन इससे रीवा की ख्याति जुड़ी है। करीब तीन पीढ़ियों से कुंदेर परिवार सुपारी से खिलौने समेत दूसरी सामान बनाते आ रहे हैं। इसके लिए राकेश कुंदेर के पिता रामिलन कुंदेर को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित भी किया जा चुका है।
सुपारी से बने खिलौने और भगवान की प्रतिमा को लेकर मांग इतनी ज्यादा है कि, एडवांस में आर्डर देना पड़ता है। सुपारी से बने ये खिलौने देश समेत विदेशो तक पहुंच रहे हैं। सुपारी के खिलौने बनाने की शुरुआत भी बड़ी रोचक है, रीवा राजघराने की ओर से सुपारी को पान के साथ इस्तेमाल किया जाता था। जबकि कुंदेर परिवार लकड़ी का काम करते थे। एक बार महराजा गुलाब सिंह कहीं जा रहे थे। उन्होंने लकड़ी का काम होता देखा, जिसके बाद उन्होंने सुपारी छिलने के लिए कहा- जिस पर कुंदेर परिवार उन्हें सुपारी छीलकर दी और तब से कुंदेर परिवार के दिमाग में सुपारी से सामान बनाने का ख्याल आया।
कुंदेर परिवार तीन पीढ़ियों से सुपारी से खिलौने और मूर्तियां बनाने का काम कर रहा है। दुर्गेश कुंदेर बताते हैं कि, सबसे पहले 1942 में उनके दादा भगवानदीन कुंदेर ने सुपारी की सिंदूरदान बनाकर महाराजा गुलाब सिंह को गिफ्ट किया था। इसके पहले महाराजा के आदेश पर ही राजदरबार के लिए लच्छेदार सुपारी काटी जाती थी। महाराजा मार्तण्ड सिंह को वाकिंग स्टिक गिफ्ट की गई, जिस पर 51 रुपए का इनाम दिया गया था।
पहले सुपारी की स्टिक, मंदिर सेट, महिलाओं के गहने जैसी चीजों पर ज्यादा फोकस रहता था। लेकिन इन दिनों गणेश प्रतिमा ही सबसे ज्यादा लोकप्रिय हो रही है। कुंदेर परिवार अपने पुस्तैनी मकान में खिलौने बनाने का काम करता है। खिलौने बनाने के लिए आम औजारों का इस्तेमाल किया जाता है। उनकी इस काला के कई दीवाने भी हैं।
साल 1968 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी रीवा आई थीं। उस दौरान उन्हें सुपारी के खिलौने भेंट किए गए थे। दिल्ली पहुंचने पर उन्होंने सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के बोर्ड आफ डायरेक्टर के पैनल में सुपारी के खिलौने बनाने वाले रामसिया कुंदेर को भी शामिल किया। इतना ही नहीं कुंदेर परिवार की इस अनोखी कला के जरिए कला प्रेमियों के दिल में अपनी खास जगह बना रखी हैं। यही कारण है की जो लोग सुपारी से बनी इन आकृतियों को देखते हैं, वो इनकी कला के कायल हो जाते हैं।