उज्जैन। कोरोना ने दुनिया को वो तस्वीर दिखा दी, जिसके बारे में शायद कभी किसी ने सोचा भी नहीं होगा। अपनों की लाश को कन्धा कौन नहीं देता, लेकिन ये दौर भी दुनिया ने देख लिया जब अपनों ने अपनों को उनके आखिरी वक़्त में लावारिश छोड़ दिया। ये सबसे भयानक तस्वीर रही इस दौर की, और ऐसे ही समय में हमारे बीच से निकल कर आए अनूठी मिसाल पेश करने वाले अनिल डागर Anil Dagar Ujjain जिन्होंने ना कोई जात देखी ना कोई बात देखी, सिर्फ उन्होंने अपना दायित्व और आस्था के अनुरूप अपना कर्तव्य का पालन किया। उन्होंने बकायदा शवों को दफनाया भी और अग्नि भी दी।
मानवता की मिसाल पेश की
मानव सेवा को ही अपना धर्म मान कर सभी धर्मों के लोगों का कोरोना महामारी में मृत लोगों का अंतिम संस्कार कर देवदूत बनकर अनिल डागर ने मानवता की मिसाल पेश की। कोरोना काल के संकट से जब देश और दुनिया जूझ रही थी उस वक्त कुछ ऐसे ही देवदूत सामने आए जिन्होंने समाज के सामने एक अनूठी मिसाल पेश की। इनमें से ही एक शख्स हैं अनिल डागर।
अपना परम धर्म मानते है
मानवता की मिसाल पेश करते हुए अनिल डागर ने हिंदू, मुस्लिम, सिख इसाई सभी धर्म कि लोगों की कोरोना के कारण मृत्यु होने के बाद सभी का अंतिम सस्कार किया। अनिल ने बताया कि मानव सेवा को ही वे अपना परम धर्म मानते है।
शवों को दफनाया भी और अग्नि दी
अनिल ने बताया कि वे जिन जिन लोगों का अंतिम संस्कार किया था उनका विधिवत तरीके से सिद्धवट आश्रम पर तर्पण और पिंडदान भी किया। अनिल ने बताया कि जब कोरोना से मौत होने के बाद अपनों के करीब नहीं आ रहे थे तो ऐसे समय में उन्होंने बकायदा शवों को दफनाया भी और अग्नि दी।